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सेंड माता मंदिर, देवगढ़, राजस्थान (Sand Mata Temple, Deogarh, Rajasthan)

सेंड माता मंदिर, देवगढ़, राजस्थान (Sand Mata Temple, Deogarh, Rajasthan)

अरावली की पहाड़ियों में स्थित है माता का खूबसूरत मंदिर, ऊंटनी के नाम से जुड़ा हुआ है मंदिर का नाम


राजस्थान की खूबसूरत अरावली पहाड़ियों में स्थित सेंड माता मंदिर, देवगढ़ के प्रमुख शक्ति स्थलों में से एक है। यह मंदिर अपने धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण भक्तों के लिए आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। लगभग 500 वर्ष पुराने इस मंदिर में देवी अंबे की पूजा होती है। नवरात्रि के दौरान यहां विशेष धार्मिक अनुष्ठान होते हैं और हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इस मंदिर का प्राकृतिक सौंदर्य और इसकी पौराणिक मान्यताएं इसे एक खास धार्मिक स्थान बना देती हैं। जो भक्ति और पर्यटन दोनों को बढ़ावा देता है। 


सेंड माता मंदिर का इतिहास 


सेंड माता मंदिर का निर्माण लगभग 500 वर्ष पहले आमेट के राव द्वारा किया गया था। मान्यताओं के अनुसार जब राव जंगलों में भटक रहे थे तो उन्हें रास्ता बताने के लिए ऊंटनी पर सवारी करती एक दिव्य महिला प्रकट हुईं जो देवी का ही एक रूप थीं। देवी के निर्देश के बाद राव ने अरावली की इस तीसरी सबसे ऊंची चोटी पर माता का भव्य मंदिर बनवा दिया। जान लें कि पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस मंदिर की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 6000 फीट है जिससे ये मंदिर 100 किलोमीटर दूर से भी दिखाई पड़ सकता है। जानकर बताते हैं कि इस मंदिर का नाम "सेंड माता" इसलिए पड़ा क्योंकि स्थानीय भाषा में ऊंटनी को "सेंड" कहा जाता है। यह माना जाता है कि जो भी भक्त माता के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 


पिछले एक दशक में ही यहां तीन बार मंदिर पर आकाशीय बिजली गिरी, लेकिन मंदिर और माता की प्रतिमा को कोई नुकसान नहीं हुआ, जिससे इस स्थल की दिव्यता और शक्ति का अंदाजा लगाया जा सकता है।



अजब है मंदिर की वास्तुकला 


अरावली पहाड़ी पर स्थित होने से ये मंदिर एक अनुपम प्राकृतिक सुंदरता का उदाहरण है। वहीं मंदिर की संरचना भी बहुत सुंदर है जो आकर्षण का केंद्र बनी रहती है। मंदिर के अंदर की दीवारों पर कांच की नक्काशी है। मंदिर में संगमरमर से बनी देवी की मूर्ति भी बेहद ही भव्य दिखती है। नवरात्रि के दौरान माता के विभिन्न स्वरूपों को विभिन्न पोशाकों से सजाया जाता है। इन 09 दिनों के दौरान माता का विशेष श्रृंगार और अनुष्ठान किए जाते हैं। मंदिर के प्रांगण से लगभग 100 किलोमीटर के दायरे में बसे गांव ऊंचाई से एकदम छोटे टापुओं की तरह दिखाई देते हैं। अगर मौसम साफ रहे तो यहां से चित्तौड़गढ़ का किला भी देखा जा सकता है जो यहां से लगभग 200 किलोमीटर दूर स्थित है।


नवरात्रि के दौरान विशेष आयोजन 


नवरात्रि के दौरान सेंड माता मंदिर का वातावरण पूरी तरह भक्तिमय रहता है। यहां 09 दिनों तक माता की विधि विधान से पूजा होती है। विभिन्न प्रकार की पोशाकों से माता का श्रृंगार किया जाता है और विधिवत तरीके से अनुष्ठान पूर्ण किए जाते हैं। नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है और यह स्थान किसी मेले का रूप धारण कर लेता है। इस समय मंदिर के प्रांगण में ज्वार बोने की परंपरा भी निभाई जाती है जिसका विसर्जन नवरात्रि की समाप्ति के बाद किया जाता है।


कैसे पहुंचे सेंड माता मंदिर? 


सेंड माता मंदिर राजस्थान के राजसमंद जिले के देवगढ़ उपखंड क्षेत्र में स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए मुख्य मार्ग निम्नलिखित हैं। 


सड़क मार्ग: देवगढ़ नजदीकी शहरों और गांवों से अच्छी तरह सड़क संपर्क से जुड़ा हुआ है। उदयपुर से देवगढ़ की दूरी लगभग 140 किलोमीटर है, जिसे सड़क मार्ग द्वारा 2-3 घंटे में तय किया जा सकता है। आप बस या टैक्सी और अपनी कार के माध्यम से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।


रेल मार्ग: देवगढ़ का नजदीकी रेलवे स्टेशन मारवाड़ जंक्शन है, जो लगभग यहां से 60 किलोमीटर दूर है। स्टेशन से टैक्सी या बस के सहारे सेंड माता मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।


वायुमार्ग: यहां से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा उदयपुर का महाराणा प्रताप हवाई अड्डा है, जो लगभग यहां से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से देवगढ़ तक टैक्सी या बस के माध्यम से पहुंचा जा सकता है।


अवसर और पर्यटन 


सेंड माता मंदिर धार्मिक आस्था के साथ-साथ एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी है। राजस्थान के प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक धरोहरों को देखने के इच्छुक पर्यटक यहां की यात्रा कर सकते हैं। यह स्थल ना केवल धार्मिक यात्रियों के लिए बल्कि विदेशी और भारतीय पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। अरावली की पहाड़ियों में स्थित यह मंदिर अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के कारण प्रसिद्ध है। नवरात्रि के दौरान यहां की भव्यता और दिव्यता देखने लायक होती है। भक्तों का मानना है कि यहां आने वाले किसी भी व्यक्ति की झोली खाली नहीं रहती और यही इस मंदिर की सबसे बड़ी महिमा भी है।


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