भगवान परशुराम का जन्म राजा जीमूतवाहन और उनकी पत्नी रेणुका के घर हुआ था। वे ब्राह्मण कुल से थे, लेकिन उनके कार्यक्षेत्र में शस्त्र-विद्या का ज्ञान और युद्धकला का अभ्यास था। उन्हें भगवान विष्णु के दशावतार में एक माना जाता है। परशुराम जी ने भगवान शिव से भी शिक्षा ली थी। ऐसा माना जाता है कि परशुराम ने भगवान शिव से अपने परशु की प्राप्ति की थी, जो उनके शक्ति और युद्ध कौशल का प्रतीक है। भगवान परशुराम का संबंध भगवान राम से भी है। एक समय पर जब राम ने भगवान शिव के धनुष को तोड़ा, तो परशुराम क्रोधित हो गए थे। लेकिन बाद में, उन्होंने राम को अपना आशीर्वाद दिया और कहा कि राम की महिमा अपरंपार है। इस घटना को रामायण में विस्तार से वर्णित किया गया है। आइए भक्त वत्सल के इस लेख में भगवान परशुराम की पूजा विधि और सामग्री और पूजा के महत्व के बारे में विस्तार से जानते हैं।
भगवान परशुराम की पूजा के लिए सामग्री के बारे में विस्तार से जान लें।
परशुराम के अवतार में शौर्य, साहस और संघर्ष की अनमोल सीख है। उनके प्रति श्रद्धा से व्यक्ति में जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का साहस और शक्ति उत्पन्न होती है। परशुराम का नाम लेने से व्यक्ति के जीवन के मानसिक और भौतिक कष्टों से छुटकारा मिल सकता है। इतना ही नहीं, उनकी पूजा से अहंकार, क्रोध, और राग-द्वेष पर काबू पाने की शक्ति मिलती है।
परशुराम जी के मंत्रों का जाप करने से शत्रुओं का नाश होता है। नियमित जाप से साधक को सिद्धियां प्राप्त होती हैं। ये मंत्र मन को शांत करते हैं और तनाव कम करते हैं। परशुराम जी ज्ञान के देवता भी हैं, इसलिए उनके मंत्रों का जाप करने से ज्ञान में वृद्धि होती है। परशुराम जी के इन मंत्रों का आप 21, 51 या 108 बार जाप कर सकते हैं। इससे उत्तम परिणाम मिल सकते हैं।
चैत्र माह की शुरुआत 15 मार्च से हो रही है। यह हिंदू पंचांग का पहला महीना है, जिसका धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से बहुत महत्व है। इस मास में की गई पूजा, व्रत और दान-पुण्य का प्रभाव संपूर्ण वर्ष पर पड़ता है। इसके अलावा मान्यता है कि इस माह में कुछ विशेष उपाय करने से जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और सफलता प्राप्त होती है।
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे चैत्र माह में मनाया जाता है। इस दिन गणपति बप्पा की पूजा करने से भक्तों को सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। इस वर्ष भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 17 मार्च 2025, सोमवार को मनाई जाएगी।
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सभी विघ्न समाप्त होते हैं और जीवन में शुभता आती है। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे संकटों को दूर करने और सफलता प्राप्त करने के लिए रखा जाता है। भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 2025 विशेष रूप से चैत्र मास में मनाई जाती है और इस दिन गणपति बप्पा की विधिपूर्वक पूजा की जाती है।