इन्द्रद्युम्न सरोवर गुंडिचा माता मंदिर से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह पवित्र तीर्थ सरोवर पांच-छः मंदिरों से घिरा हुआ है। जगन्नाथ पुरी में मंदिर के आस-पास ऐसे ही 6 चमत्कारी कुंड हैं। इन सभी कुंडों से कोई न कोई पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। जगन्नाथ पुरी जाने पर इन कुंडों के दर्शन करना भी अनिवार्य है। ऐसा नहीं करने पर पुरी की यात्रा अधूरी मानी जाती है। इन्हीं 6 कुंड़ों में से एक है इन्द्रद्युम्न सरोवर।
इन्द्रद्युम्न सरोवर कुंड, पुरी के गुंडिचा माता मंदिर से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस कुंड का संबंध भगवान श्रीकृष्ण से माना जाता है। यहां श्री कृष्ण के बालरूप को समर्पित एक मंदिर भी बना हुआ है। इस कुंड को लेकर मान्यता है कि यहां स्नान करने से इंद्रलोक की प्राप्ति होती है। साथ ही यहां पर पिंडदान करने का भी प्रचलन है। कहते हैं कि यहां आकर पिंडदान करने वाले की 21 पीढ़ियों को मुक्ति मिल जाती है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा इन्द्रद्युम्न ने अश्वमेध यज्ञ के दौरान ब्राह्मणों को हजार गायों का दान दिया था। हजारों की संख्या में इन पवित्र गायों के खड़े होने वाले स्थान पर उनके खुरों से पृथ्वी में काफी गहरा गड्ढा बना, जिसने एक बड़े तालाब का रूप लिया। तालाब को गौ मूत्र और जल से भरा गया, जिसे राजा ने अश्वमेध यज्ञ के दौरान प्रयोग किया। इस प्रकार यह तालाब एक तीर्थ बन गया।
आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमाला की सातवीं पहाड़ी पर स्थित तिरुपति मंदिर विश्व का सबसे प्रसिद्ध है। यहां आने के बाद बैकुंठ जैसी अनुभूति होती है।
भैरव बाबा हिंदू धर्म में भगवान शिव का एक उग्र रूप हैं। उन्हें तांत्रिक शक्ति और रक्षा का प्रतीक माना जाता है। साथ ही वे भक्तों के रक्षक और दुःख हरने वाले भी हैं। काल भैरव को समय और मृत्यु का देवता माना जाता है।
जब शनिवार और त्रयोदशी तिथि एक साथ आती है तो उसे शनि त्रयोदशी कहते हैं। यह एक खास दिन होता है। यह हर महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आता है।
शनि देव 9 ग्रहों में सबसे धीमी चाल चलने वाले ग्रह हैं। इसी कारण शनि देव 1 राशि में साढ़े सात साल तक विराजमान रहते हैं। इसी वजह से ही राशियों पर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या चलती है।