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कार्तिगाई दीपम पौराणिक कथा

कार्तिगाई दीपम पौराणिक कथा

Karthigai Deepam 2025: कार्तिगाई दीपम पर क्यों जलाया जाता है दीपक? जानें क्या है इसके पीछे की वजह 



कार्तिगाई दीपम का पर्व मुख्य रूप से तमिलनाडु, श्रीलंका समेत विश्व के कई तमिल बहुल देशों में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और उनके पुत्र कार्तिकेय की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसके अलावा घर में सुख समृद्धि आती है। इस दिन दीपक जलाने का खास महत्व माना जाता है। इस पर्व के पीछे एक पौराणिक कथा है। तो आइए, इस आर्टिकल में इस दिन दीपक जलाने की वजह और इसके पीछे की कहानी के बारे में जानते हैं। 

कार्तिगाई दीपम में क्यों जलाते हैं दीपक? 


हिंदू धर्म में कार्तिगाई दीपम दीपम का विशेष महत्व है। यह पर्व दक्षिण भारत में अधिक प्रचलित है। इस दिन लोग अपने घरों और आस-पास दीपक जलाते हैं। मान्यता है कि इस दिन पूजा करने और शाम के समय दीपक जलाने से परिवार पर भगवान कार्तिकेय की कृपा बनी रहती है। साथ ही अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा शाम को दीपक जलाने से घर से वास्तु दोष दूर होता है। इस दिन तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई अरुणाचलेश्वर स्वामी मंदिर में कार्तिगाई दीपम उत्सव का भव्य आयोजन होता है। यह कार्तिकाई बह्मोत्सव के नाम से भी जाना जाता है।

कार्तिगाई दीपम पौराणिक कथा 


कार्तिगाई दीपम दीपम का पर्व मनाने से जुड़ी एक कथा प्रचलित हैं जिसके अनुसार, सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्म का भेद बताने के लिए भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। जब ब्रह्मा और विष्णु जो अपने को श्रेष्ठ साबित करने के लिए संघर्ष कर रहे थे, तभी उनके सामने आकाशवाणी हुई कि जो इस लिंग के आदि या अंत का पता करेगा वही श्रेष्ठ होगा। भगवान विष्णु वराह रूप में शिवलिंग के आदि का पता करने के लिए भूमि खोदकर पाताल की ओर जाने लगे और ब्रह्मा हंस के रूप में अंत का पता लगाने आकाश में उड़ चले परंतु वर्षों बीत जाने पर भी दोनों आदि अंत का पता नहीं कर पाए। भगवान विष्णु हार मानकर लौट आए। परंतु ब्रह्माजी ने भगवान शिव के शीश के गिरकर आने वाले केतकी के फूल से पूछा कि शिवलिंग का अंत कहां है। 

केतकी ने बताया कि वह युगों से नीचे गिरता चला आ रहा है परंतु अंत का पता नहीं चला है। ब्रह्माजी को लगा कि वह हार गए हैं तो वह लौटकर आ गए और झूठ बोल दिया कि उन्हें शिवलिंग के अंत का पता चल गया है। ब्रह्माजी के इस झूठ को सुनकर ज्योर्तिलिंग ने प्रचंड रूप धारण कर लिया। जिसके बाद सृष्टि में हाहाकार मचने लगा। बाद में देवताओं द्वार क्षमा याचना करने पर यह ज्योति तिरुमल्लई पर्वत पर अरुणाचलेश्व लिंग के रूप में स्थापित हुआ। मान्यता है कि यहीं से शिवरात्रि का त्योहार मनाना भी शुरू किया गया। 

क्या है दूसरी वजह? 


कार्तिगाई दीपम पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा भी है। इस कथा के अनुसार कुमार कार्तिकेय को 6 कृतिकाओं ने 6 अलग-अलग बालकों के रूप में पाला इन्हें देवी पार्वती ने एक बालक में परिवर्तित कर दिया उसके बाद से यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाने लगा।


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