प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत 13 जनवरी से होने जा रही है। अखाड़ों के साधु-संतों का पहुंचना जारी है। वहीं आम लोग भी संगम नगरी प्रयागराज पहुंच रहे हैं। इनमें कई ऐसे भी है , जो त्रिवेणी संगम पर कल्पवास करने के लिए आए हैं। माघ महीने में प्रयागराज के पवित्र त्रिवेणी संगम तट पर किया जाने वाला यह विशेष आध्यात्मिक अनुष्ठान है। इसका उद्देश्य आध्यात्मिक शांति , आत्म शुद्धि और ईश्वर की साधना करना है। इसी कारण से संगम तट पर डेरा डालकर भक्त ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए विशेष नियम धर्म के साथ पूरा महीना व्यतीत करते हैं। चलिए आपको कल्पवास की पूरी प्रक्रिया के बारे में बताते हैं।
कल्पवास की शुरुआत प्रातः काल 4 बजे ब्रह्म मुहूर्त में होती है। श्रद्धालु त्रिवेणी संगम के ठंडे जल में स्नान करते हैं। यह जल बेहद पवित्र माना जाता है। स्नान करने के बाद श्रद्धालु संगम की रेती से पार्थिव शिवलिंग का निर्माण करते हैं और पूजा अर्चना करते हैं। इसके बाद सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
कल्पवासी संगम किनारे सात्विक आहार ग्रहण करते हुए तंबुओं में रहते हैं और साधारण जीवन जीते हैं। वे ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए पूरा दिन भजन कीर्तन ,मंत्र उपचार करते हैं और अपना ज्यादातर समय सत्संग में बिताते हैं। इससे भगवान को जानने को भी मिलता है और मन को शांति मिलती है।इसके अलावा वे दान पुण्य और सेवा भी करते हैं, क्योंकि कल्पवास के दौरान इसका खास महत्व है।
कल्पवासी अपने वास के पहले दिन अपने तंबू या टेंट के पास जौ और तुलसी का पौधा लगाते हैं। 1 महीने में जौ में छोटे छोटे पौधे आ जाते हैं, जिसे कल्पवासी अपने साथ लेकर जाते हैं, वहीं कुछ मात्रा में इन्हें गंगा में प्रवाहित कर देते हैं। वहीं तुलसी के पौधे को वे रोजाना गंगाजल से सीचतें हैं।
लाल लंगोटा हाथ में सोटा,
चले पवन की चाल,
चली चली रे,
चली चली रे,
चली जा रही है उमर धीरे धीरे,
पल पल यूँ आठों पहर धीरे धीरे,
भजमन शंकर भोलेनाथ,
डमरू मधुर बजाने वाले,