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महाकुंभ में अखाड़ों की पेशवाई क्यों होती है

महाकुंभ में अखाड़ों की पेशवाई क्यों होती है

16वीं शताब्दी में शुरू हुई थी पेशवाई की परंपरा, साधुओं ने मुगलों से लड़ी थी लड़ाई, जानें इतिहास



महाकुंभ की शुरुआत में 15 दिन से कम का समय रह गया है। 13 जनवरी से इसकी शुरुआत होने जा रही है।इससे पहले अलग-अलग अखाड़े प्रयागराज में अपनी पेशवाई निकल रहे हैं और नगर प्रवेश कर रहे हैं। कई अखाड़ों ने अपनी पेशवाई निकाल ली है, जिन्हें देखने के लिए प्रयाग उमड़ पड़ा। आपको बता दें कि पेशवाई अखाड़ों का भव्य नगर प्रवेश है, जो कुंभ मेले की शुरुआत का संकेत देता है। संतों और महंतों का यह भव्य जुलूस होता है, जो उनकी  शक्ति और संस्कृति का प्रतीक है। यह परंपरा  गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को समेटे हुए है। चलिए आज आपको इस परंपरा के इतिहास और इसका  मुगलों से संबंध के बारे में बताते हैं।

महाकुंभ में क्या होती है पेशवाई ?


महाकुंभ में साधु-संतों की पेशवाई मुख्य आकर्षण होती है। आसान भाषा में समझे तो साधु संत जब महाकुंभ के दौरान जुलूस निकालते हैं और नगर प्रवेश करते हैं,तो उसे ही पेशवाई कहा जाता है। इस दौरान शोभायात्रा में बैंड-बाजे और ढोल नगाड़ों को भी शामिल किया जाता है। हाथी-घोड़े के रथ देखने मिलते है, जिन पर अखाड़ों के मुख्य साधु बैठकर नगर प्रवेश करते हैं। वहीं  अनुयायी और शिष्य पैदल यात्रा करते हैं। पंक्ति में सबसे आगे नागा साधु अपने शस्त्रों के प्रदर्शन करते चलते हैं।

पेशवाई का इतिहास


माना जाता है कि पेशवाई की परंपरा सदियों से चली रही है। लेकिन इसका संबंध मुगल काल की घटनाओं से भी है। कुछ पुस्तकों के मुताबिक 16वीं शताब्दी में जहांगीर ने कुंभ मेले को बाधित करने के लिए  संतों के एकजुट होने पर  पाबंदी लगा दी।  इसके बाद जब जहांगीर के राज में  कुंभ मेला लगा तो उसकी सेना ने कुंभ में आने वाले संतों पर हमला करना शुरू कर दिया। इसमें लगभग 60 संतों की मृत्यु हो गई। इससे नाराज नागा साधुओं ने मोर्चा संभालते हुए जहांगीर की सेना को परास्त किया। तभी से मेला क्षेत्र में एक साथ प्रवेश करने की परंपरा आरंभ हुई।

पेशवाई का स्वरूप


पेशवाई का स्वरूप  बहुत भव्य होता है।इसमें शामिल होने वाले साधु-संत परंपरागत वेशभूषा में होते हैं। वहीं नागा साधु अपने शरीर पर भभूत लगाकर और शस्त्रों के साथ आकर्षण का केंद्र बनते हैं। जुलूस में घोड़े, हाथी, ऊंट और फूलों से सजे रथ शामिल होते हैं। वहीं ढोल-नगाड़ों और वैदिक मंत्रोच्चार से जगह का पूरा माहौल आध्यात्मिकता से भर जाता है।

पेशवाई के दौरान भक्त करते हैं स्वागत


साधु संतों की टोली अपने शिष्यों के साथ पूरे रीति रिवाजों का पालन करते हुए पेशवाई के साथ नगर प्रवेश करती हैं। यह दृश्य किसी उत्सव से कम नहीं होता है भक्त सड़क के दोनों और खड़े होते हैं और साधु संतों का पुष्प वर्षा के साथ स्वागत करते हैं। सरकार भी हेलीकॉप्टर के जरिए साधु संतों पर पुष्पवर्षा करवाती है। पेशवाई के बिना महाकुंभ के आयोजन को अधूरा माना जाता है।

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