कुंभ मेला भारत की प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है, जिसे विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन माना जाता है। हर 12 साल में होने वाले इस आयोजन का मुख्य आकर्षण साधु संतों के अखाड़े होते हैं। अखाड़े हिंदू धर्म के प्रमुख संगठन , जो सनातन के प्रचार-प्रसार का काम करते है। कुंभ इनके लिए शक्ति और एकता के प्रदर्शन का केंद्र बनता है। इन्हें देखने और इनसे ज्ञान लेने के लिए भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु कुंभ में पहुंचते हैं। यह एक तरह से कुंभ की पहचान है। चलिए आपको अखाड़ों और कुंभ के गहरे संबंध के बारे में बताते हैं।
सबसे पहले अखाड़ों के इतिहास के बारे में जानते है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार 8वीं शताब्दी में महर्षि आदि शंकराचार्य ने देश के कई अलग-अलग हिस्सों में हिंदू धर्म के मठों और अखाड़ों की शुरुआत की। इसके जरिए साधुओं को आध्यात्मिक ज्ञान और शस्त्र शिक्षा दी जाती थी। अखाड़ों को स्थापित करने का मकसद ही बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभाव और मुस्लिम आक्रमणकारियों से हिंदू धर्म की रक्षा करना था। समय के साथ अखाड़े भी बढ़ते चले गए और इनका विस्तार होता गया।
आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में चार अखाड़े स्थापित किए थे। समय के साथ इनका विस्तार होता गया है। आज 13 अखाड़े को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से मान्यता प्राप्त है। यह संगठन अखाड़ों के बीच समन्वय के लिए बनाया गया है। संगठन की कमेटियां हिंदू धर्म के धर्म ग्रंथों से जुड़े कई बड़े फैसले लेती है। इन 13 अखाड़ों के अलावा और भी कई अखाड़े है, लेकिन उन्हें अखाड़ा परिषद से मान्यता नहीं मिली हुई है।
कुंभ मेले में अखाड़ों का खासा महत्व है। इसकी शुरुआत शाही स्नान से होती है। इस बार 14 जनवरी को मकर संक्रांति के मौके पर पहला शाही स्नान होने वाला है। इसमें सबसे पहले अखाड़े शाही स्नान करते है। इनमें भी नागा साधु सबसे पहली आस्था की डुबकी लगाएंगे। इसके बाद बाकी 12 अखाड़ों का क्रम तय है। बता दें कि यह स्नान न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि अखाड़ों की शक्ति और प्रतिष्ठा का प्रदर्शन भी होता है। अखाड़ों की परेड, जो घोड़ों, हाथियों और पारंपरिक वस्त्रों से सजी होती है, जो मेले का प्रमुख आकर्षण होती है।
कुंभ मेला और अखाड़े, दोनों ही भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। इनकी उपस्थिति इस मेले को एक विशेष महत्व प्रदान करती है। अखाड़े न केवल धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
चाहे छाए हो बादल काले,
चाहे पाँव में पड़ जाय छाले,
चला फुलारी फूलों को
सौदा-सौदा फूल बिरौला
भोला तन पे भस्म लगाये,
मन में गौरा को बसाये,
लाल लंगोटा हाथ में सोटा,
चले पवन की चाल,