कुंभ का मेला आध्यात्मिकता और धार्मिक परंपराओं का जीवंत स्वरूप है। कुंभ के अवसर पर शाही स्नान का आयोजन होता है, जिसमें देशभर के साधु-संत विभिन्न अखाड़ों के माध्यम से शामिल होते हैं। अखाड़े साधुओं के वे समूह हैं जो धर्म रक्षा और समाज में धर्म का प्रचार-प्रसार करते हैं। कुंभ के मेलों में इन अखाड़ों का विशेष महत्व है। अखाड़ा केवल साधुओं का संगठन नहीं है; यह धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक चेतना का केंद्र है। अखाड़ों की परंपरा भारतीय संस्कृति और धर्म से जुड़ी है। तो आइए इस लेख में अखाड़ों की परंपरा और इतिहास को विस्तार से समझते हैं।
अखाड़ा शब्द का सामान्य अर्थ कुश्ती लड़ने के स्थान से है, लेकिन साधुओं के संदर्भ में इसका अर्थ है धार्मिक और आध्यात्मिक संगठन। ये संगठन केवल ध्यान और साधना तक सीमित नहीं हैं, बल्कि शस्त्र विद्या में भी पारंगत हैं। इन साधुओं को कुंभ और अन्य धार्मिक आयोजनों में विशेष सम्मान प्राप्त है।
ऐसा माना जाता है कि अखाड़ों को यह नाम सबसे पहले आदि शंकराचार्य ने दिया। जब बौद्ध धर्म का वर्चस्व बढ़ रहा था और हिंदू धर्म पर बाहरी आक्रमण हो रहे थे, तब आदि शंकराचार्य ने धर्म रक्षा के लिए शस्त्र विद्या में निपुण साधुओं के संगठन बनाए। इन संगठनों को अखाड़ा नाम दिया गया।
अखाड़ों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा और समाज में आध्यात्मिक चेतना फैलाना था। शुरुआत में केवल चार अखाड़े थे, लेकिन समय के साथ बढ़ते वैचारिक मतभेदों के कारण इनकी संख्या बढ़ती गई।
आज भारत में 14 मान्यता प्राप्त अखाड़े हैं। इनमें 13 पारंपरिक अखाड़े हैं, जो शैव, वैष्णव और उदासीन संप्रदायों से संबंधित हैं। 2019 में प्रयागराज कुंभ के दौरान किन्नर अखाड़े को भी मान्यता दी गई, जिससे इनकी संख्या 14 हो गई।
1. शैव संन्यासी अखाड़े: ये अखाड़े भगवान शिव की उपासना करते हैं और उनकी शिक्षाओं का पालन करते हैं। इनकी संख्या 07 है।
2. वैष्णव बैरागी अखाड़े: ये अखाड़े भगवान विष्णु के भक्तों का समूह हैं। इनकी संख्या 03 है।
3. उदासीन अखाड़े: ये गुरु नानक के अनुयायियों से संबंधित हैं। इनकी संख्या भी 03 है।
4. किन्नर अखाड़ा: 2019 में इस अखाड़े को आधिकारिक मान्यता दी गई। यह किन्नर समाज के साधुओं का संगठन है।
कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और धर्म का प्रमुख पर्व है। यह साधु-संतों के लिए विशेष अवसर होता है, जहां वे संगम या गंगा में शाही स्नान करते हैं। शाही स्नान के दौरान अखाड़ों के साधु विशेष रीतियों का पालन करते हैं।
शाही स्नान को अखाड़ों का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है। इसमें हाथी, घोड़े, शंख, नगाड़े और शस्त्र प्रदर्शन के साथ साधु स्नान के लिए गंगा की ओर प्रस्थान करते हैं। यह दृश्य भारतीय परंपरा और धार्मिकता का जीवंत प्रतीक है। इसलिए, अखाड़े भारतीय संस्कृति और धर्म के अभिन्न अंग हैं। ये आध्यात्मिकता का केंद्र हैं और समाज को एकजुट करने और धर्म की रक्षा करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अखाड़ों की परंपरा आदि शंकराचार्य के समय से लेकर आज तक जीवंत है और इनका महत्व कुंभ जैसे आयोजनों में विशेष रूप से दिखता है। भारतीय धर्म और संस्कृति को समझने के लिए अखाड़ों का इतिहास और परंपरा जानना अत्यंत आवश्यक है।
माघ पूर्णिमा के बाद फाल्गुन माह की शुरुआत होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह हिंदू वर्ष का अंतिम महीना होता है। इसके उपरांत हिंदूनववर्ष आ जाएगा। फाल्गुन के महीने को फागुन का महीना भी कहा जाता है। इस महीने महाशिवरात्रि और होली जैसे बड़े त्योहार मनाए जाते हैं।
महाकुंभ का अगला पवित्र स्नान माघ पूर्णिमा के दिन 12 फरवरी को है। पूर्णिमा के दिन स्नान और दान को हमेशा से हिंदू धर्म में शुभ माना गया है।हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि का बहुत ज्यादा महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और चंद्र देव की पूजा का विधान है।
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