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पौष मास है छोटा पितृ पक्ष

पौष मास है छोटा पितृ पक्ष

पौष मास है छोटा पितृ पक्ष, पौष अमावस्या पितरों को मुक्ति दिलाने का दिन

 
पौष मास को छोटा पितृ पक्ष भी कहा जाता है। सूर्यदेव के कन्या राशि में आने पर होने वाले मुख्य पितृ पक्ष के अलावा इस माह में भी श्राद्ध तथा पिंडदान के अलावा भगवान विष्णु और सूर्यदेव की पूजा का भी विशेष महत्व है। विशेषकर पौष अमावस्या पितरों को मुक्ति दिलाने का दिन है। अर्यमा देवता पितरों के प्रमुख हैं। अमावस्या में पितृगणों की पूजा करने से वे प्रसन्न होकर वंश, धन, आयु, बल की वृद्धि करते हैं। तो आइए इस आलेख में पौष मास के बारे में विस्तार से जानते हैं। 

तीन प्रकार ही होती है अमावस्या


अमावस्या कुल तीन प्रकार की होती है। जब सूर्योदय से शुरू होकर पूरी रात अमावस्या तिथि हो तो उसे ‘सिनीवाली अमावस्या’ कहते हैं। चतुर्दशी के साथ अमावस्या तिथि हो तो उसे ‘दर्श अमावस्या’ कहा गया है। इसके अलावा जब अमावस्या के साथ प्रतिपदा तिथि भी हो तो उसे ‘कुहू अमावस्या’ कहा जाता है। 

क्या है पौष अमावस्या की कथा? 

 
लोकमानस में पौष अमावस्या व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जो इस प्रकार है। किसी गांव में एक गरीब ब्राह्मण था। बहुत यत्न करने पर भी गरीबी के कारण उसकी बेटी का विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन उसके घर एक सिद्ध साधु आए। उन्होंने उस ब्राह्मण की सेवा से प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया। इतना ही नहीं, उसकी कन्या का शीघ्र विवाह हो जाए, उसके लिए एक खास उपाय बताया।
 
दरअसल, साधु ने उस कन्या से कहा कि यहां से कुछ दूरी पर एक गरीब परिवार रहता है। यदि वह प्रतिदिन वहां जाकर उसकी पत्नी की सेवा करे तो उसके आशीर्वाद से उसके विवाह में आने वाली रुकावट दूर हो जाएगी अैर उसका विवाह शीघ्र हो जाएगा।

साधु के बताए अनुरूप वह लड़की काम करने लगी। उस घर में रहने वाली स्त्री यह देखकर हैरान थी। कई दिनों से उसके सुबह उठने से पहले ही कोई उसके घर के सारे काम कर जाता है। उसके मन में यह जानने की उत्सुकता हुई। अगले दिन वह सुबह जल्दी उठकर छिप कर यह देखने लगी कि कौन उसकी सेवा करता है। कुछ देर में वह लड़की आई और उसने रोज की तरह झोपड़ी की साफ-सफाई कर दी। तभी वह स्त्री उसके सामने आ गई और उसने इसका कारण पूछा। 

लड़की ने उसे साधु वाली सारी बात बता दी। उस स्त्री ने लड़की की सच्चाई और सेवा से खुश होकर उसके शीघ्र विवाह का आशीर्वाद दे दिया। लेकिन, इसके कुछ ही देर बाद उस स्त्री के पति का देहांत हो गया। इतना होने पर भी उसने हिम्मत नहीं हारी और झोपड़ी के बाहर लगे पीपल के वृक्ष की पूजा करते हुए 108 परिक्रमा की और अपने पति का जीवन लौटाने की प्रार्थना करने लगी। उसकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसके पति को जीवित कर दिया।

ऐसा लोक विश्वास है कि जो व्यक्ति पौष अमावस्या के दिन स्नान-दान कर पीपल की परिक्रमा कर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करता है। उसकी सारी मनोरथ पूर्ण हो जाती है।

पितरों का करें तर्पण


पौष माह में पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म करना अत्यंत शुभ माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस महीने में किया गया तर्पण पितरों को संतुष्टि और शांति प्रदान करता है। इस महीने में अमावस्या का दिन पितरों के लिए विशेष माना गया है, जब उनके निमित्त दान-पुण्य किया जाता है।

निषिद्ध रहते हैं मांगलिक कार्य 


पौष माह में विवाह, गृह प्रवेश एवं अन्य मांगलिक कार्य निषिद्ध रहते हैं। इस महीने देवताओं के विश्राम का समय होता है। इसलिए, इसे धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा-पाठ के लिए भी उपयुक्त माना जाता है।

दान और पुण्य का है महत्व


पौष माह में दान-पुण्य का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार, इस महीने में जरूरतमंदों को गर्म कपड़े, अनाज और अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इसे विशेष रूप से आर्थिक और सामाजिक समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना गया है।

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मेरे उठे विरह में पीर(Mere Uthe Virah Me Pir)

मेरे उठे विरह में पीर,
सखी वृन्दावन जाउंगी ॥

मेरी आस तू है माँ, विश्वास तू है माँ(Meri Aas Tu Hai Maa Vishwas Tu Hai Maa)

मेरी आस तू है माँ,
विश्वास तू है माँ,

मेरी आखिओं के सामने ही रहना(Meri Akhion Ke Samne Hi Rehina Oh Shero Wali Jagdambe)

मेरी आखिओं के सामने ही रहना,
माँ शेरों वाली जगदम्बे ।

घर में आओ लक्ष्मी माता (Mere Ghar Aao Laxmi Maa)

घर में आओ लक्ष्मी माता,
आओ पधारो श्री गणराजा ।

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