जब भी शुभ कार्य किया जाता है तो सबसे पहले भगवान गणेश जी का ही पूजन होता है। गणेश जी से भक्त सफलता के लिए प्रार्थना करते हैं। इसके अलावा किसी भी पूजा या अनुष्ठान में भी सबसे पहले गणपति को ही याद किया जाता है। कहते हैं कि यदि शुभ कार्य से पहले गणेश जी का आशीर्वाद लिया जाए तो कार्य में कोई बाधा नहीं आती। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि आखिर सबसे पहले गणेश जी का ही पूजन क्यों करते हैं? तो आइए इस आलेख में हम आपको इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में बताते हैं।
हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य के आरंभ से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। चाहे शादी-विवाह हो, गृह प्रवेश या अन्य कोई धार्मिक अनुष्ठान, सबसे पहले गणपति जी को याद किया जाता है। माना जाता है कि गणेश जी के आशीर्वाद से कार्य में सफलता मिलती है और किसी प्रकार की बाधा नहीं आती। भगवान शिव और विष्णु से भी पहले गणेश जी की पूजा क्यों होती है? इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं और धार्मिक मान्यताएं हैं।
लिंग पुराण: लिंग पुराण के अनुसार, देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे राक्षसों के दुष्ट कृत्यों पर लगाम लगाएं। तब शिवजी ने गणेश जी को विघ्न विनाशक बनाया। इसलिए मांगलिक कार्यों और पूजा में नकारात्मक शक्तियों को दूर रखने के लिए सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती है।
महर्षि पाणिनि की व्याख्या: महर्षि पाणिनि के अनुसार सभी दिशाओं के स्वामी "गण" कहलाते हैं, और गणों के अधिपति होने के कारण गणेश को "गणपति" कहा गया। बिना गणेश जी की पूजा के कोई भी देवता या दिशा शुभ फल प्रदान नहीं करते।
शिव महापुराण: एक पौराणिक कथा के अनुसार शिवजी ने अपने पुत्र गणेश का सिर त्रिशूल से काट दिया था। बाद में, पार्वती जी के क्रोध को शांत करने के लिए गणेश जी को हाथी का सिर लगाकर जीवनदान दिया। शिवजी ने वरदान दिया कि गणेश जी की पूजा हर शुभ कार्य से पहले की जाएगी।
माता पार्वती और भगवान शिव की कथा: पार्वती जी ने स्नान के दौरान गणेश को पहरेदारी का आदेश दिया। जब शिवजी अंदर आना चाहते थे, तो गणेश ने उन्हें रोक दिया। क्रोधित होकर शिवजी ने उनका सिर काट दिया। पार्वती जी के क्रोध को शांत करने के लिए गणेश को जीवित किया गया और उन्हें प्रथम पूज्य का वरदान दिया गया।
गणेश और कार्तिकेय की कथा: गणेश और कार्तिकेय के बीच यह तय करने के लिए प्रतियोगिता हुई कि कौन श्रेष्ठ है। शर्त थी कि जो पृथ्वी का चक्कर लगाकर पहले लौटेगा, वह विजेता होगा। कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर निकल पड़े, जबकि गणेश ने अपने माता-पिता की परिक्रमा कर कहा कि माता-पिता से बड़ा कोई नहीं। इस बुद्धिमानी के कारण गणेश को विजेता घोषित किया गया और उन्हें प्रथम पूज्य का स्थान मिला।
गणेश जी को बुद्धि और विवेक का देवता माना जाता है। हर कार्य की सफलता के लिए बेहतर योजना और नेतृत्व की आवश्यकता होती है। गणेश जी की पूजा यह संकेत देती है कि किसी भी कार्य के आरंभ से पहले विवेक और ज्ञान का उपयोग करना आवश्यक है। बता दें कि गणेश जी की पूजा सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दर्शाती है कि हर शुभ कार्य की शुरुआत बाधाओं को दूर कर, ज्ञान और विवेक के साथ करनी चाहिए। यही कारण है कि गणेश जी को "विघ्नहर्ता" और "प्रथम पूज्य" के रूप में पूजा जाता है।
2025 में, मकर संक्रांति विशिष्ट योग में 14 जनवरी को मनाई जाएगी। 14 जनवरी को सुबह 8 बजकर 41 मिनट पर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होगा। ऐसे में सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक स्नान-ध्यान और दान का शुभ मुहूर्त रहेगा।
आत्मा के कारक सूर्य देव हर महीने एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण करते हैं। सूर्य देव के इस राशि परिवर्तन को ही संक्रांति कहते हैं। हर संक्रांति का अपना खास महत्व होता है और इसे धूमधाम से मनाया जाता है।
सकट चौथ व्रत मुख्यतः संतान की लंबी उम्र, उनके अच्छे स्वास्थ्य और तरक्की की कामना के लिए रखा जाता है। इस पर्व को गौरी पुत्र भगवान गणेश और माता सकट को समर्पित किया गया है। इसे भारत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे:- तिलकुट चौथ, वक्र-तुण्डि चतुर्थी और माघी चौथ।
हिंदू धर्म में संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि से जुड़े कई व्रत-त्योहार हैं। जिनमें से सकट चौथ का पर्व विशेष माना जाता है। यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन महिलाएं संतान की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।