सदाशिव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो ।
हरे सब दुःख भक्तों के,
दयाकर हो तो ऐसा हो ॥
शिखर कैलाश के ऊपर,
कल्पतरुओं की छाया में ।
रमे नित संग गिरिजा के,
रमणधर हो तो ऐसा हो ॥
सदाशिव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो ।
शीश पर गंग की धारा,
सुहाए भाल पर लोचन ।
कला मस्तक पे चन्दा की,
मनोहर हो तो ऐसा हो ॥
सदाशिव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो ।
भयंकर जहर जब निकला,
क्षीरसागर के मंथन से ।
रखा सब कण्ठ में पीकर,
कि विषधर हो तो ऐसा हो ॥
सदाशिव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो ।
सिरों को काटकर अपने,
किया जब होम रावण ने ।
दिया सब राज दुनियाँ का,
दिलावर हो तो ऐसा हो ॥
सदाशिव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो ।
बनाए बीच सागर के,
तीन पुर दैत्य सेना ने ।
उड़ाए एक ही शर से,
त्रिपुरहर हो तो ऐसा हो ॥
सदाशिव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो ।
देवगण दैत्य नर सारे,
जपें नित नाम शंकर जो,
वो ब्रह्मानन्द दुनियाँ में,
उजागर हो तो ऐसा हो ॥
सदाशिव सर्व वरदाता,
दिगम्बर हो तो ऐसा हो ।
हरे सब दुःख भक्तों के,
दयाकर हो तो ऐसा हो ॥
हनुमानजी स्तुति,
जय बजरंगी जय हनुमाना,
जय भोले शंकर जय गंगाधारी,
देवो के देवा हे महादेवा,
जय बोलो जय बोलो जय हनुमान की,
संकट मोचन करुणा दयानिधान की,
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥