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राम भक्त लें चला रे, राम की निशानी (Ram Bhakt Le Chala Re Ram Ki Nishani)

राम भक्त लें चला रे, राम की निशानी (Ram Bhakt Le Chala Re Ram Ki Nishani)

राम भक्त ले चला रे,

राम की निशानी ॥


चौपाई – प्रभु कर कृपा पावँरी दीन्हि,

सादर भरत शीश धरी लीन्ही ॥


राम भक्त ले चला रे,

राम की निशानी,

शीश पर खड़ाऊँ,

अखियों में पानी,

राम भक्त लें चला रे,

राम की निशानी ॥


शीश खड़ाऊ ले चला ऐसे,

राम सिया जी संग हो जैसे,

अब इनकी छाव में,

रहेगी राजधानी,

राम भक्त लें चला रे,

राम की निशानी ॥


पल छीन लागे सदियों जैसे,

चौदह बरस कटेंगे कैसे,

जाने समय क्या खेल रचेगा,

कौन मरेगा कौन बचेगा,

कब रे मिलन के फूल खिलेंगे,

नदियाँ के दो पुल मिलेंगे,

जी करता है यहीं बस जाए,

हिलमिल चौदह वरष बिताएं,

राम बिन कठिन है,

इक घड़ी बितानी,

राम भक्त लें चला रे,

राम की निशानी ॥


तन मन बचन,

उमंग अनुरागा,

धीर धुरंधर,

धीरज त्यागा,

भावना में बह चले,

धीर वीर ज्ञानी,

राम भक्त लें चला रे,

राम की निशानी ॥


राम भक्त ले चला रें,

राम की निशानी,

शीश पर खड़ाऊँ,

अखियों में पानी,

राम भक्त लें चला रे,

राम की निशानी ॥


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कुंभ मेले का इतिहास

कुंभ मेला भारतीय संस्कृति की अदम्य शक्ति और आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है। यह महोत्सव ना सिर्फ एक धार्मिक आयोजन है। बल्कि, यह आत्मा की शुद्धि और सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है।

कुंभ से जुड़ी पौराणिक कथा

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विवाह दिन में करें या रात में

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विवाह में क्यों होते हैं सात फेरे

हिंदू धर्म में शादी केवल एक सामाजिक बंधन नहीं है। बल्कि, इसे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। विवाह को 16 संस्कारों में से एक प्रमुख संस्कार के रूप में गिना जाता है।

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