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ओ सांवरे हमको तेरा सहारा है (O Sanware Humko Tera Sahara Hai)

ओ सांवरे हमको तेरा सहारा है (O Sanware Humko Tera Sahara Hai)

ओ सांवरे हमको तेरा सहारा है,

तेरी रहमतो से चलता,

तेरी रहमतो से चलता मेरा गुजारा है,

ओ सांवरे हमको तेरा सहारा है ॥


तुमसे जुड़ी हुई है मेरी हर कहानी,

तेरे भरोसे बाबा मेरी जिंदगानी,

तुम पर ही निर्भर बाबा,

तुम पर ही निर्भर बाबा जीवन ये सारा है ,

ओ सांवरे हमको तेरा सहारा है ॥


पिता की तरह तुमने सिख सिखाई,

माँ की तरह तुमने ममता लुटाई,

मेरी गलतियों को बाबा,

मेरी गलतियों को बाबा सदा ही बिसारा है,

ओ सांवरे हमको तेरा सहारा है ॥


जीवन को जबसे तुमने छुआ है,

हर एक लम्हा तब से सुनहरा हुआ है,

एक एक पल को तुमने,

हर एक पल को तुमने प्यार से सवारा है,

ओ सांवरे हमको तेरा सहारा है ॥


रजनी को आप जैसा साथी ना मिलेगा,

बनकर जो साया हरपल साथ जो चलेगा,

सोनू कहे कोई बाबा,

सोनू कहे कोई बाबा तुमसा ना प्यारा है,

ओ सांवरे हमको तेरा सहारा है ॥


ओ सांवरे हमको तेरा सहारा है,

तेरी रहमतो से चलता,

तेरी रहमतो से चलता मेरा गुजारा है,

ओ सांवरे हमको तेरा सहारा है ॥

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गणेश जी को मोदक क्यों प्रिय हैं?

हिंदू धर्म में भगवान गणेश की पूजा मोदक के भोग के बिना अधूरी मानी जाती है। बप्पा को मोदक बेहद प्रिय है। आप कितने भी 56 भोग भगवान को भोग लगा दें, लेकिन मोदक के बिना पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है। अब ऐसे में आखिर भगवान गणेश को मोदक इतना क्यों प्रिय है। आइए भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से जानते हैं।

मौनी अमावस्या पर सबसे बड़ा शाही स्नान

महाकुंभ के धार्मिक त्यौहार में श्रद्धालुओं और साधु संतों का जमावड़ा नजर आने वाला है। इस मौके पर लाखों श्रद्धालु और साधु संत प्रयागराज में एकत्रित होंगे और आस्था की डुबकी लगाएंगे। महाकुंभ के दौरान कुल छह शाही स्नान होंगे, जिनमें से पहला शाही स्नान 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा पर होगा।

कुंभ में कल्पवास का महत्व

महाकुंभ मेला हर 12 साल में भारत के चार पवित्र स्थलों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—में आयोजित किया जाता है। साल 2025 में यह दिव्य आयोजन प्रयागराज में होगा, जो लगभग 30 से 45 दिनों तक चलेगा।

पेशवाई का इतिहास

महाकुंभ की शुरुआत में अब केवल 15 दिन से भी कम का समय बचा है। इससे पहले, विभिन्न अखाड़े प्रयागराज में अपनी पेशवाई निकाल रहे हैं और नगर में प्रवेश कर रहे हैं। कई अखाड़ों ने अपनी पेशवाई पूरी कर ली है, जिन्हें देखने के लिए प्रयाग का वातावरण उमड़ पड़ा है।

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