मोहनी मुरति साँवरी सूरति,
आइ बसौ इन नैनन में ।
अति सुन्दर रूप अनूप लिये,
नित खेलत खात फिरौ वन में ॥
निशि वासर पान करूँ उसका,
रसधार जो बाँसुरी की धुन में ।
बैकुन्ठ से धाम की चाह नहीं,
बस बास करूँ वृन्दावन में ॥
पीठ से पीठ लगाइ खड़े,
वह बाँसुरी मन्द बजा रहे हैं ।
अहोभाग्य कहूँ उस धेनु के क्या,
खुद श्याम जिसे सहला रहे हैँ ॥
बछड़ा यदि कूद के दूर गयौ,
पुचकार उसे बहला रहे हैं ॥
गोविंद वही, गोविंद वही,
गोपाल वही कहला रहे हैं ॥
नाम पुकारि बुलाई गयी,
तजि भूख और प्यास भजी चली आयी ।
कजरी, बजरी, धूमरि, धौरी,
निज नामन से वो रहीं हैं जनायी ॥
धूप गयी और साँझ भयी तब,
बाँसुरी मन्द दयी है बजायी ।
घनश्याम के पीछे ही पीछे चलें,
वह धेनु रहीं हैं महा सुख पायी ॥
बैकुन्ठ नहीं, ब्रह्मलोक नहीं,
नहीं चाह करूँ देवलोकन की ।
राज और पाठ की चाह नहीं,
नहीं ऊँचे से कुन्ज झरोकन की ॥
चाह करूँ बस गोकुल की,
यशोदा और नंद के दर्शन की ।
जिनके अँगना नित खेलत हैं,
उन श्याम शलौने से मोहन की ॥
गोविंद हरे गोपाल हरे,
जय जय प्रभु दीनदयाल हरे ।
इस मन्त्र का जो नित जाप करे,
भव सिंन्धु से पार वो शीघ्र तरे ॥
वह भक्ती विकास करे नित ही,
और पाप कटें उसके सगरे ।
घनश्याम के ध्यान में मस्त रहे,
उर में सुख शाँति निवास करे ॥
माघ पूर्णिमा का हिंदू धर्म में खास है। इस दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और चंद्रदेव की पूजा की जाती हैं। इस दिन लोग व्रत करते हैं और सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ करते हैं। इसके साथ ही चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं।
हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि का काफी महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और चंद्र देव की पूजा का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस तिथि पर लोग व्रत रखते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं।
सनातन हिंदू धर्म में माघ पूर्णिमा का काफी महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, माघ पूर्णिमा के दिन किए गए स्नान और दान विशेष फलदायी होता है।
हिंदू धर्म में, पूर्णिमा का विशेष महत्त्व होता है। प्रत्येक महीने में एक बार पूर्णिमा का व्रत आता है। यह माता लक्ष्मी को समर्पित होता है। इस दिन माता लक्ष्मी के साथ-साथ चंद्र देव की पूजा भी की जाती है।