मैं तो शिव ही शिव को ध्याऊँ,
जल से स्नान कराऊँ,
मैं तो चावल चंदन चढ़ाऊँ,
मैं तो चावल चंदन चढ़ाऊँ,
और आक धतूरा ल्याऊँ,
मैं तो शिव ही शिव को ध्याऊं,
जल से स्नान कराऊँ ॥
मैं तो जलधारा बरसाऊँ,
मैं तो जलधारा बरसाऊँ,
और अगड़बंब मुख गाऊँ,
और अगड़बंब मुख गाऊँ,
मैं तो शिव ही शिव को ध्याऊं,
जल से स्नान कराऊँ ॥
तब प्रसन्न भए शिव राजा,
तब प्रसन्न भए शिव राजा,
वर माँगो सारू काजा,
वर माँगो सारू काजा ॥
मोको और कछु ना चाहिए,
श्री राधा कृष्ण मिलइये,
मोको और कछु ना चाहिए,
श्री राधा कृष्ण मिलइये ॥
धन नरसी बुद्धि तिहारी,
धन नरसी बुद्धि तिहारी,
ते तो वर मांग्यो अति भारी,
ते तो वर मांग्यो अति भारी ॥
अस बुद्धि और को पावे,
अस बुद्धि और को पावे,
हरि भक्तन को हरि भावे,
मोको और कछु ना चाहिए,
श्री राधा कृष्ण मिलइये,
मोको और कछु ना चाहिए,
श्री राधा कृष्ण मिलइये ॥
मैं तो शिव ही शिव को ध्याऊँ,
जल से स्नान कराऊँ,
मैं तो चावल चंदन चढाऊँ,
और आक धतूरा ल्याऊँ,
मैं तो शिव ही शिव को ध्याऊं,
जल से स्नान कराऊँ ॥
साल में 24 एकादशी का व्रत रखा जाता है। ये सभी भगवान विष्णु को समर्पित होते है। एकादशी व्रत हर महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर रखा जाता है, जो प्रत्येक माह में दो बार आती है।
सनातन हिंदू धर्म में एकादशी काफ़ी महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह दिन पूरी तरह से श्री हरि की पूजा को समर्पित है। इस शुभ दिन पर भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उनके लिए उपवास करते हैं।
पौष माह की कृष्ण पक्ष की सफला एकादशी का व्रत विशेष माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की उपासना करने और व्रत रखने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
सनातन धर्म में कलावा बांधने का काफ़ी महत्व है। इसे रक्षा सूत्र के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल, हाथ पर कलावा बांधने की शुरुआत माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई है।