मैं दो-दो माँ का बेटा हूँ,
दोनों मैया बड़ी प्यारी है ।
एक माता मेरी जननी है,
एक जग की पालनहारी है ॥
मैं जननी को जब माँ कहता,
वो सिर पर हाथ फिराती है ।
त्रिशूल रुपणी दादी को,
वो जगमाता बतलाती है ।
मैं उसकी गोद में जाता हूँ,
वो तेरी शरण दिखलाती है ।
अब शरण में तेरी आया हूँ,
तू क्यों नहीं गले लगाती है ॥
॥ मैं दो-दो माँ का बेटा हूँ...॥
मेरी जननी ओझल हुई,
पर तुम तो समाने हो मेरे ।
वो इसी भरोसे छोड़ गई,
कि तुम तो साथ में हो मेरे ।
अब दिल जो माँ को याद करे,
वो सीधे तेरे दर जाए ।
हे जग जननी तेरी छवि में ही,
मेरी मैया मुझे नजर आए ॥
॥ मैं दो-दो माँ का बेटा हूँ...॥
जनंनी ने मुझको जन्म दिया,
तुम बन के यशोदा पाली हो ।
मेरी जनंनी की भी जननी तुम,
दादीजी झुंझुनुवाली हो ।
वो लोरी मुझे सुनाती है,
तुम सत्संग मुझे कराती हो ।
वो भोजन मुझे खिलाती है,
तुम छप्पन भोग जिमाती हो ॥
॥ मैं दो-दो माँ का बेटा हूँ...॥
मैं दो-दो माँ का बेटा हूँ,
दोनों मैया बड़ी प्यारी है ।
एक माता मेरी जननी है,
एक जग की पालनहारी है ॥
हिंदू धर्म में त्योहारों का विशेष महत्व है। हर त्योहार अपनी पौराणिक कथाओं और परंपराओं के कारण अद्वितीय स्थान रखता है। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है 'अन्वाधान’, जिसे वैष्णव सम्प्रदाय विशेष रूप से मनाता है।
सीताराम सीताराम जपाकर
राम राम राम राम रटा कर
सीता राम जी के आरती उतारूँ ए सखी
केकरा के राम बबुआ केकरा के लछुमन
भारत में अन्वाधान का अपना एक अलग स्थान है। अन्वाधान कृषि चक्र और आध्यात्मिक उन्नति से जुड़ा पर्व है। इन्हें जीवन को पोषित करने वाली दिव्य शक्तियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु मनाया जाता है।