ओम जय शिव ओंकारा,
हर हर शिव ओंकारा,
गंगा जटा समाए आपके,
जिसने जग तारा ॥
जय भयहारक पातक तारक,
जय जय अविनाशी,
जय महेश जय आदिदेव,
जय जय कैलाशी,
कृपा आपकी से मिटता है,
मन का अंधियारा ॥
जय त्रिपुरारी जय मदहारी,
भक्तन हितकारी,
जय डमरुधर जय नागेश्वर,
भोले भंडारी,
मेरी बड़ी भूल को प्रभु ने,
पल में निस्तारा ॥
जो शिव को नाहीं समझे,
वह बड़ा है अज्ञानी,
पग पग पर वह ठोकर खाता,
ऐसा अभिमानी,
शिव कृपा से जगमग करता,
है यह जग सारा ॥
ओम जय शिव ओंकारा,
हर हर शिव ओंकारा,
गंगा जटा समाए आपके,
जिसने जग तारा ॥
श्री परम पावनभूमि कैलाश पर्वत पर विशाल वट वृक्ष के नीचे भगवान् शिव-पार्वती एवं सभी गणों सहित अपने बाघम्बर पर विराजमान थे।
माँ दुर्गाकी नव शक्तियोंका दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणीका है। यहाँ श्ब्राश् शब्दका अर्थ तपस्या है। ब्रह्मचारिणी अर्थात् तपकी चारिणी-तपका आचरण करनेवाली। कहा भी है वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म-वेद, तत्त्व और तप श्ब्राश् शब्दक अर्थ हैं।
श्री ऋषिपंचमी व्रत कथा (भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को किया जाने वाला व्रत) राजा सुताश्व ने कहा कि हे पितामह मुझे ऐसा व्रत बताइये जिससे समस्त पापों का नाश हो जाये।
सन्तान सप्तमी व्रत कथा (यह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को किया जाता है।) एक दिन महाराज युधिष्ठिर ने भगवान् से कहा कि हे प्रभो!