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होली आई रे होली आई रे(Holi Ae Re Holi Aae Re)

होली आई रे होली आई रे(Holi Ae Re Holi Aae Re)

होली आई रे होली आई रे होली आई वृन्दावन खेले गोरी ॥

भागन पे आयो है फागण महीना कभू प्रेम की होरी बईं न,

हिरदये की आशा लता खिली है उमगी उमगी रस धारा वही है,

खूब चली पिचकारी रे पिचकारी चला दो भर जोरि,

होली आई रे होली आई रे होली आई वृन्दावन खेले गोरी ॥


गोरी रंगीली होरी खेलन को आओ,

सोला शृंगार कर खेलन पधारो,

ढोलक मंजीरा और जांज बजाओ,

सखियाँ की सेना लेके नाचन को आओ,

घर घर से बन आई बन आई शक्ल ब्रिज की गोरी,

होली आई रे होली आई रे होली आई वृन्दावन खेले गोरी ॥


जा जा निर्मोही छेला मोह से न करो बात,

छलियाँ निर्मोही तुमको करो धात,

मीठी मीठी बातन से मन न लुभाओ ,

मैं तो हारी मोहे अब न सताओ,

मैंने परख ले चतुराई रे ,

चतुराई परख ले अब टोरी,

होली आई रे होली आई रे होली आई वृन्दावन खेले गोरी ॥

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8वीं सदी में बनाए थे 13 अखाड़े

प्रयागराज में कुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी से हो रही है। अखाड़ों का आना भी शुरू हो गया है। महर्षि आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में इनकी स्थापना की थी।

भगवान को पंचामृत से स्नान क्यों कराते हैं?

हिंदू धर्म में पंचामृत का विशेष महत्व है। यह एक पवित्र मिश्रण है जिसे पूजा-पाठ में और विशेष अवसरों पर भगवान को अर्पित किया जाता है। पंचामृत में दूध, दही, घी, शहद और शक्कर शामिल होते हैं। इन पांच पवित्र पदार्थों को मिलाकर बनाया गया पंचामृत भगवान को प्रसन्न करने और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है।

हाथ जोड़कर ही क्यों करते हैं प्रार्थना?

ईश्वर से जुड़ने और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के अपने खास तरीके हैं। हिंदू धर्म में, प्रार्थना करते समय आंखें बंद कर लेना और हाथ जोड़कर खड़े होते हैं। हाथ जोड़ना सिर्फ एक नमस्कार नहीं है, बल्कि यह विनम्रता, सम्मान और आभार का प्रतीक है।

सिर पर कपड़ा बांधकर पूजा क्यों की जाती है?

हिंदू धर्म में मंदिर, घर या किसी भी पवित्र स्थान पर पूजा करते समय सिर को ढकने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह माना जाता है कि पूजा के दौरान सिर ढकने से व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ मिलता है। महिलाएं आमतौर पर साड़ी का पल्लू या दुपट्टा और पुरुष रूमाल का उपयोग करते हैं।

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