भवसागर तारण कारण हे ।
रविनन्दन बन्धन खण्डन हे ॥
शरणागत किंकर भीत मने ।
गुरुदेव दया करो दीनजने ॥१॥
हृदिकन्दर तामस भास्कर हे ।
तुमि विष्णु प्रजापति शंकर हे ॥
परब्रह्म परात्पर वेद भणे ।
गुरुदेव दया करो दीनजने ॥२॥
मनवारण शासन अंकुश हे ।
नरत्राण तरे हरि चाक्षुष हे ॥
गुणगान परायण देवगणे ।
गुरुदेव दया करो दीनजने ॥३॥
कुलकुण्डलिनी घुम भंजक हे ।
हृदिग्रन्थि विदारण कारक हे ॥
मम मानस चंचल रात्रदिने ।
गुरुदेव दया करो दीनजने ॥४॥
रिपुसूदन मंगलनायक हे ।
सुखशान्ति वराभय दायक हे ।
त्रयताप हरे तव नाम गुणे
गुरुदेव दया करो दीनजने ॥५॥
अभिमान प्रभाव विमर्दक हे ।
गतिहीन जने तुमि रक्षक हे ॥
चित शंकित वंचित भक्तिधने ।
गुरुदेव दया करो दीनजने ॥६॥
तव नाम सदा शुभसाधक हे ।
पतिताधम मानव पावक हे ॥
महिमा तव गोचर शुद्ध मने ।
गुरुदेव दया करो दीनजने ॥७॥
जय सद्गुरु ईश्वर प्रापक हे ।
भवरोग विकार विनाशक हे ॥
मन जेन रहे तव श्रीचरणे ।
गुरुदेव दया करो दीनजने ॥८॥
हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि को अत्यंत शुभ और पवित्र माना गया है। वर्षभर में 12 अमावस्या तिथियां आती हैं, लेकिन माघ मास में पड़ने वाली मौनी अमावस्या को विशेष आध्यात्मिक महत्ता प्राप्त है।
माघ मास में आने वाली अमावस्या को माघी अमावस्या भी कहा जाता है। मौनी अमावस्या के दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है। इस दिन तीर्थराज प्रयागराज में त्रिवेणी संगम में स्नान के लिए भारी संख्या में भक्त आते हैं।
हर साल माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस दिन श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और दान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए गए पुण्य कर्मों का फल कई गुना बढ़ जाता है।
माघ मास की अमावस्या, जिसे मौनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन को लेकर कई तरह की धार्मिक मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं। माना जाता है कि इस दिन पितृ देवता धरती पर आते हैं और अपने वंशजों के द्वारा किए गए पिंडदान से प्रसन्न होते हैं।