माँ गंगा मैया का गरिमामय माहात्म्य ॥
बेद की औषद खाइ कछु न करै बहु संजम री सुनि मोसें ।
तो जलापान कियौ रसखानि सजीवन जानि लियो रस तेर्तृ ।
एरी सुघामई भागीरथी नित पथ्य अपथ्य बने तोहिं पोसे ।
आक धतूरो चाबत फिरे विष खात फिरै सिव तेऐ भरोसें ।
- सैयद रसखान
धीरे चलो री, पवन धीरे - धीरे चलो री।
धीरे चलो री पुरवइया।
ममतामयी मां हे जगदम्बे, मेरे घर भी आ जाओ।
(ममतामयी मां हे जगदम्बे, मेरे घर भी आ जाओ।)
दरबार में हर रंग के दीवाने मिलेंगे,
( दरबार में हर रंग के दीवाने मिलेंगे,)
खेल पंडा खेल पंडा खेल पंडा रे। (खेल पंडा खेल पंडा खेल पंडा रे।)