अत्रि (वैदिक ऋषि) ऋषि को ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में से एक और चन्द्रमा, दत्तात्रेय और दुर्वासा का भाई माना जाता है। अत्रि ऋषि ने वैदिक देवताओं जैसे अग्नि, इन्द्र और सनातन संस्कृति के अन्य वैदिक देवताओं के लिए बड़ी संख्या में भजन लिखे हैं। अत्रि सनातन परम्परा में सप्तर्षि (सात महान वैदिक ऋषियों) में से एक है, और सबसे ऋग्वेद: में इनका उल्लेख सबसे अधिक है। ऋषि अत्रि, ब्रह्मा के सतयुग के 10 पुत्रों में से एक माने जाते हैं। अयोध्या नरेश श्रीराम अपने वनवास काल में भार्या सीता तथा बन्धु लक्ष्मण के संग अत्रि ऋषि के चित्रकूट आश्रम में आए थे। अत्रि ऋषि सती अनुसुईया के पति थे। सती अनुसुईया सोलह सतियों में से एक थीं। जिन्होंने अपने तपोबल से ब्रम्हा, विष्णु एवं महेश को बालक रूप में परिवर्तित कर दिया था। पुराणों में वर्णित है कि इन्हीं तीनों देवों ने माता अनुसुईया से वरदान प्राप्त किया था, कि हम आपके पुत्र रूप में आपके गर्भ से जन्म लेंगे । यही तीनों चन्द्रमा (ब्रम्हा) दत्तात्रेय (विष्णु) और दुर्वासा (शिव) के अवतार हैं। यह भी धारणा है कि ऋषि अत्रि ने अंजुली में जल भरकर सागर को सोख लिया था फिर सागर ने याचना कि हे! ऋषिवर् मुझमें निवास करने वाले समस्त जीव-जन्तु एवं पशु-पक्षी जल के बिना प्यास से मारे जाएंगे अतः मैं आपसे यह विनम्र निवेदन करता हूं कि मुझे जलाजल कर दें। तब ऋषि अत्रि प्रसन्न हुए और उन्होंने मूत्रमार्ग से सागर को मुक्त कर दिया। माना जाता है तब से ही सागर का जल खारा हो गया। ऋषि अत्रि को प्राचीन भारत में बहुत बड़ा वैज्ञानिक भी माना जाता है। उनका हमारे देश में कृषि विकास के लिए योगदान सबसे अहम माना जाता है।
मैंने तेरे ही भरोसे हनुमान,
सागर में नैया डाल दई ॥
मै हूँ बेटी तू है माता,
ये है जनम-जनम का नाता ।
मैया आरासुरी करजो आशा पूरी म्हारी अम्बे,
हूँ तो विनती करूँ जगदम्बे,
मैया अम्बे मैया,
लाल तेरा घबराये हर पल तुझे बुलाये ॥