हिंदू धर्म के अनुसार, प्रारंभिक काल में ब्रह्मा जी ने समुद्र और धरती पर हर प्रकार के जीवों की उत्पत्ति की। इस काल में उन्होंने अपने कई मानस पुत्रों को भी जन्म दिया, जिनमें से एक मरीची थे। कश्यप ऋषि मरीची जी के विद्वान पुत्र थे। इनकी माता कला कर्दम ऋषि की बेटी व भगवान कपिल देव की बहन थीं। अपने श्रेष्ठ गुणों, प्रताप व तप के बल पर उनकी गिनती श्रेष्ठतम महान विभूतियों में होती थी। भगवान परशुराम ऋषि कश्यप के शिष्य थे। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, कश्यप ऋषि के वंशज ही सृष्टि के प्रसार में सहायक हुए। कश्यप ऋषि की 17 पत्नियां थी। इनकी अदिति नाम की पत्नी से सभी देवता और दिति नाम की पत्नी से दैत्यों की उत्पत्ति मानी गई है। ऐसा माना जाता है कि शेष पत्नियों से भी अलग-अलग जीवों की उत्पत्ति हुई है। वे देवों, असुरों, नागों, गरुड़, वामन, अग्नि, आदित्य, दैत्य, आर्यमन, मित्र, पूसन, वरुण और समस्त मानवता के पिता थे। वे प्रजापति हैं। वे कश्यप संहिता के लेखक थे जो आयुर्वेदिक बाल चिकित्सा, स्त्री रोग और प्रसूति विज्ञान के क्षेत्र में शास्त्रीय संदर्भ पुस्तक है। राजा परीक्षित की कहानी में, जब तक्षक ने एक पेड़ को काटकर उसे राख में बदल दिया, तो कश्यप उसे रोकने के लिए पहुंचे। कश्यप ने अपनी योगिक शक्तियों से पेड़ को फिर से स्थापित किया और सर्प को हराया। हालांकि, यह ब्राह्मण लड़के के श्राप की व्याख्या करता है और बताता है कि इसके परिणाम भुगतने होंगे। राजा के भविष्य को समझते हुए ऋषि तक्षक से प्रसाद लेकर वहां से चले जाते हैं। जल्द ही उन्हें एहसास होता है कि जो किया गया वह सही नहीं था और पाप से मुक्ति पाने के लिए तिरुपति जाते हैं। कश्यप एक प्रचलित गोत्र का भी नाम है। यह एक बहुत व्यापक गोत्र है। कहते हैं कि जिस मनुष्य का गोत्र नहीं मिलता उसका गोत्र कश्यप मान लिया जाता है, क्योंकि एक परम्परा के अनुसार सभी जीवधारियों की उत्पत्ति कश्यप से हुई है। ऋषि कश्यप के बारे में आप भक्तवत्सल के ब्लॉग सेक्शन में विस्तार से जानकारी हासिल कर सकते हैं। ये आर्टिकल ऋषि कश्यप के जीवन का एक छोटा सा हिस्सा मात्र है, अधिक जानकारी के लिए भक्तवत्सल के ब्लॉग सेक्शन में जाएं।
हिंदू धर्म में हल्दी को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। हल्दी के बिना कोई भी धार्मिक अनुष्ठान नहीं किए जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में हल्दी का संबंध देवगुरु बृहस्पति से बताया गया है। इतना ही नहीं किसी भी पूजा-पाठ में हल्दी सबसे महत्वपूर्ण सामग्री मानी जाती है।
प्रयागराज में कुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी से हो रही है। अखाड़ों का आना भी शुरू हो गया है। महर्षि आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में इनकी स्थापना की थी।
हिंदू धर्म में पंचामृत का विशेष महत्व है। यह एक पवित्र मिश्रण है जिसे पूजा-पाठ में और विशेष अवसरों पर भगवान को अर्पित किया जाता है। पंचामृत में दूध, दही, घी, शहद और शक्कर शामिल होते हैं। इन पांच पवित्र पदार्थों को मिलाकर बनाया गया पंचामृत भगवान को प्रसन्न करने और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है।
ईश्वर से जुड़ने और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के अपने खास तरीके हैं। हिंदू धर्म में, प्रार्थना करते समय आंखें बंद कर लेना और हाथ जोड़कर खड़े होते हैं। हाथ जोड़ना सिर्फ एक नमस्कार नहीं है, बल्कि यह विनम्रता, सम्मान और आभार का प्रतीक है।