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अश्वत्थामा (Ashwatthama)

अश्वत्थामा (Ashwatthama)

गुरु द्रोणाचार्य और कृपी के पुत्र अश्वत्थामा महाभारत काल से इस धरती पर मौजूद है। महाभारत की कथा के अनुसार, अश्वत्थामा के मुख से अपने जन्म के बाद जो सबसे पहली आवाज निकाली थी वे एक अश्व के समान थी जिसके बाद ये भविष्यवाणी हुई कि यह बालक  अश्वत्थामा के नाम से जाना जाएगा। अश्वत्थामा के सिर पर जन्म से ही एक मणि थी। वे प्रचंड योद्धा होने के साथ-साथ अपने क्रोध और अहंकार के लिए भी जाने जाते हैं। वे ब्राह्मण शस्त्र गुरुओं की एक पंक्ति से थे, और अपने मित्र दुर्योधन के प्रति बेहद निष्ठावान थे। अश्वत्थामा को आठ रुद्रों में से एक माना जाता है और वे महाभारत युद्ध में कौरवों के अंतिम सेनापति थे। महाभारत के अनुसार अश्वत्थामा ने रात के अंधकार में युद्ध के नियमों को तोड़ते हुए पांडव शिविर में जाकर धोखे से पांडवों के पांच पुत्रों का वध कर दिया, साथ ही अभिमन्यु के पत्नि उत्तरा के गर्भ को भी ब्रह्माशास्त्र से नष्ट कर दिया था। जिसके बाद अश्वत्थामा के इस कर्म से क्रोधित होकर भगवान श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को भयानक शाप दिया। कृष्ण ने उनके मस्तक से मणि निकालकर रिसते हुए घाव के साथ अनंतकाल तक भटकने का श्राप दिया था। ऐसा कहा जाता है कि जब कल्युग में भगवान विष्णु कल्कि अवतार लेगें तो अश्वत्थामा उनकी धरती पर मदद करेंगे। श्री कृष्ण के साप की वजह से ही वो अब तक धरती पर निवास कर रहे हैं और इसलिए उन्हें सप्त चीरंजीवियों में से एक माना गया है। महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद कौरवों की ओर से सिर्फ तीन योद्धा जीवित रहे थे  जिनमें कृप यानी कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्थामा है। युद्ध के बाद कृप हस्तिनापुर चले आए और कृतवर्मा द्वारका। शाप से दुःखी अश्वत्थामा को व्यास मुनि ने शरण दी थी। 

कुछ मान्यताओं के अनुसार मध्यप्रदेश, उड़ीसा और उत्तराखंड के वनों में आज भी अश्वत्थामा को देखे जाने की चर्चाएं आती रहती है। मध्यप्रदेश के असीरगढ़ के किले में एक प्राचीन शिव मंदिर है। भगवान शिव के इस मंदिर में हर दिन कौन गुलाल और फूल अर्पित करके चला जाता है यह एक रहस्य है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर तक आने का एक गुप्त रास्ता है जिससे अश्वत्थामा आकर यहां शिव जी की पूजा करते हैं।


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अपरा एकादशी व्रत कथा

अपरा एकादशी का व्रत जेष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है, जो विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा का दिन होता है। एकादशी का दिन भगवान विष्णु के समर्पण और कृपा प्राप्त करने के सर्वोत्तम दिन के रूप में जाना जाता है।

अपरा एकादशी राशि परिवर्तन

इस साल अपरा एकादशी 23 मई 2025 को मनाई जाएगी। यह तिथि विशेष रूप से धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है। क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा होती है।

शिव योग में मनाया जाएगा शनि प्रदोष व्रत

प्रदोष व्रत हिंदू धर्म में भगवान शिव की उपासना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। इस साल आने वाला ‘शनि प्रदोष व्रत’ शनिवार, 24 मई को मनाया जाएगा। यह विशेष रूप से शुभ माना जा रहा है, क्योंकि यह ‘शिव योग’ में पड़ रहा है।

ज्येष्ठ माह की मासिक शिवरात्रि की तिथि

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाने वाली ‘मासिक शिवरात्रि’ भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली व्रत माना जाता है।

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