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कृपाचार्य (Kripacharya)

कृपाचार्य (Kripacharya)

कुरुवंश के कुलगुरु के रूप विख्यात कृपाचार्य महर्षि यानी संत होने के साथ-साथ अद्वितीय योद्धा भी थे। इन्होंने कौरवों-पांडवों को अस्त्र विद्या सिखाई थी, साथ ही वे परमतपस्वी भी थे। कृपाचार्य को राजा शांतनु ने अपनी बहन कृपी के साथ गोद लिया था। इनकी बहन कृपी का विवाह गुरु द्रोणाचार्य से हुआ। कृपाचार्य जी एक महान ऋषि थे। ये अश्वत्थामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। महाभारत में उन्होंने कौरवों की ओर से कुरुक्षेत्र का युद्ध लड़ा, तो वे उन कुछ योद्धाओं में से एक थे जो युद्ध समाप्त होने के बाद भी जीवित रहे। महाभारत में उन्हें उनकी निष्पक्षता के लिए जाना जाता था, इसी के कारण उन्हें भगवान परशुराम से उन्हें अमरत्त्व का वरदान मिला था। कृपाचार्य परिस्थिति के अनुसार अपने को ढालने के लिए जाने जाते हैं, इसलिए ये कौरवों की ओर से लड़ने और पराजित होने के बावजूद पांडवों के कुलगुरु के पद पर आसीन हुए। श्रीमद्भागवत पुराण में उल्लेख मिलता है कि मनु के समय कृपाचार्य की गिनती सप्तऋर्षियों में होती थी।

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होली से पहले आने वाला होलाष्टक क्या है

एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार जब प्रह्लाद भगवान विष्णु की स्तुति गाने के लिए अपने पिता हिरण्यकश्यप के सामने अड़ गए, तो हिरण्यकश्यप ने भगवान हरि के भक्त प्रह्लाद को आठ दिनों तक यातनाएं दीं।

होलाष्टक से जुड़े पौराणिक कथा

होलाष्टक का सबसे महत्वपूर्ण कारण हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा से जुड़ा है। खुद को भगवान मानने वाला हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रह्लाद की भक्ति से नाराज था।

होलाष्टक के यम-नियम क्या हैं

हिंदू पंचांग के अनुसार होलाष्टक होली से पहले आठ दिनों की एक विशेष अवधि है, जो फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से होलिका दहन तक चलती है। इस अवधि के दौरान कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है।

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त

हिंदू कैलेंडर के अनुसार होली का त्योहार फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन से पहले होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

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