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विभीषण (Vibhishan)

विभीषण (Vibhishan)

विभीषण ऋषि विश्रवा और राक्षसी कैकसी के पुत्र थे। वे एक धर्मपरायण व्यक्ति थे जो हमेशा सत्य के मार्ग पर चलते थे। हालांकि आज किसी दूसरी जगह पर अपने घर के राज खोलने वाले व्यक्ति को विभीषण की संज्ञा दी जाती है। कथाओं के अनुसार पूरी लंका में अकेले विभीषण ही ऐसी व्यक्ति थे जो लंका के हित में सोचते थे और रावण को श्री राम से बैर न करने की सलाह देते थे लेकिन रावण ने उनकी एक भी बात न सुनते हुए अपमानित कर लंका से निकाल दिया था। विभीषण ने राष्ट्रहित के लिए रावण का विरोध किया और भाई तथा कुल के द्रोही होने के कलंक के साथ ही मातृभूमि के हित में कार्य करते हुए सत्य का साथ दिया। रावण के छोटे भाई विभीषण को चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है। विभीषण ने अपने सगे भाई रावण के विरुद्ध जाकर धर्म के लिए भगवान राम का साथ दिया था। इसलिए उन्हें अमरता का वरदान मिला। देखा जाए तो विभीषण अश्वत्थामा के विपरीत हैं- अश्वत्थामा वह चिरंजीवी है जिसने अपने मित्र के प्रति वफादार रहकर बुराई को चुना था. जबकि विभीषण ने अपने भाई के प्रति प्रेम के बावजूद अच्छाई का पक्ष चुना। ऐसा करने पर उन्हें पुरस्कार मिला और वे पृथ्वी पर बरदान के साथ मौजूद हैं जबकि अश्वत्थामा श्राप की वजह से धरती पर भटक रहे हैं।

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श्री गणेश चालीसा

जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥

श्री हनुमान चालीसा (Shri Hanuman Chalisa)

हनुमान चालीसा न केवल एक भक्तिपूर्ण स्तुति है, बल्कि यह विश्वास, शक्ति और समर्पण का प्रतीक भी है। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित यह चालीसा श्री हनुमान जी की महिमा का बखान है।

श्री शिव चालीसा

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान।।

श्री दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥

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