पंजाब का बठिंडा शहर अपने आप में ऐतिहासिक, धार्मिक महत्व के साथ अद्भुत दृश्यों को समेटे हुए है। इसी शहर में मैसर खाना मंदिर स्थित है। ये मंदिर देवी दुर्गा, देवी ज्वाला के सम्मान में बनाया गया था। ये मंदिर बठिंडा से करीब 30 किमी की दूरी पर मनसा रोड पर स्थित है। इस मंदिर में हर साल शारदीय और चैत्र नवरात्रि की अष्टमी के दिन भव्य मेला लगता है।
किवंदती के अनुसार, बहुत पहले कमला नामक एक व्यक्ति दूर ज्वाला जी की खतरनाक तीर्थयात्रा पर निकला था, लेकिन वह ये यात्रा पूरी करने में असफल रहा। इसलिए उसने मां दुर्गा को खुश करने और उनके दर्शन करने के लिए आजीवन तपस्या शुरू कर दी। अपने भक्त की तपस्या से खुश होकर मां दुर्गा ने एक साल में दो बार अपने भक्त को दर्शन दिए।
इसलिए यहाँ साल में दो बार मेला लगता है। लोग लगभग पूरे पंजाब और यहां तक कि आसपास के राज्यों से भजन गाने के लिए इकठ्ठा होते है। इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि, सिख और हिंदू दोनों समान उत्साह के साथ इकठ्ठा होते हैं तभी तीन उच्च अधिकारियों राधेश्याम बुढलाडा, मौर मंडी के जगन्नाथ जी और हंसराज अग्रवाल ने धन एकत्र किया और मंदिर बनाने के लिए भारत के सर्वश्रेष्ठ वास्तुकारों का काम पर रखा।
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते॥
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि,चन्द्र सहोदरि हेममये ,
मुनिगणमण्डित मोक्षप्रदायनि,मञ्जुळभाषिणि वेदनुते।
व्रत करने वाला पूर्णिमा व संक्रान्ति के दिन सायंकाल को स्नानादि से निवृत होकर पूजा-स्थान में आसन पर बैठ कर श्रद्धा पूर्वक गौरी, गणेश, वरूण, विष्णु आदि सब देवताओं का ध्यान करके पूजन करें और संकल्प करें कि मैं सत्यनारायण स्वामी का पूजन तथा कथा-श्रवण सदैव करूंगा ।
भगवती महालक्ष्मी चल एवं अचल, दृश्य एवं अदृश्य सभी सम्पत्तियों, सिद्धियों एवं निधियों की अधिष्ठात्री साक्षात् नारायणी हैं।