महाकुंभ 2025 की शुरुआत प्रयागराज में हो रही है। इसके लिए साधु-संत भी पहुंच गए हैं। इनमें से कई साधु संत श्रद्धालुओें के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। खासकर नागा साधुओं को देखने के लिए बड़ी भीड़ उमड़ रही है। बता दें कि नागा साधु सनातन धर्म के एक विशेष और रहस्यमय संप्रदाय है। ये मूल रूप से शैव संप्रदाय से जुड़े होते है और भगवान शिव के परम भक्त होते है।
इनकी खास बात है कि ये सिर्फ कुंभ के दौरान नजर आते हैं और इसके बाद अपनी गुफाओं में लौट जाते हैं। वे मुख्य तौर पर अपनी कठोर जीवनशैली, निर्वस्त्र अवस्था और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए जाने जाते हैं। बेहद कम दिखाई देने के कारण महाकुंभ और अर्धकुंभ जैसे अवसरों पर नागा साधु विशेष रूप से चर्चा में रहते हैं। लेकिन एक नागा साधु बनने के लिए कठोर प्रक्रिया का पालन करना होता है और बहुत सारा त्याग करना होता है। इचलिए आज आपको नागा साधुओं की जीवनशैली और नियमों के बारे में बताते हैं, जिनका नागा साधु बनने के लिए पालन करना होता है।
नागा साधु बनने का पहला चरण है सांसारिक जीवन का पूर्ण त्याग।। सांसारिक सुख के साथ व्यक्ति को तप में भी लीन होना होता है। इसके बाद वह किसी अखाड़े में दीक्षा लेने की प्रक्रिया शुरू कर सकता है।
जब अखाड़ों के बड़े संतों को लगता है कि व्यक्ति संन्यास के लिए पूरी तरह समर्पित है, तो वो उसे गुरु दीक्षा देते हैं। दीक्षा के दौरान साधु बनने वाले व्यक्ति का "पिंडदान" और "श्राद्ध" किया जाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि उसने अपने पुराने जीवन का त्याग कर दिया है।
नागा साधु बनने की दीक्षा प्राप्त करने के बाद 12 साल तक कठोर तप करना होता है। इस दौरान ब्रह्मचर्य, संयम, और तपस्या के नियमों का पालन करना पड़ता है।
नागा साधु बनने के बाद संन्यासी को कई कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है।
1. नग्नता
नागा साधु हमेशा नग्न रहते हैं, यह उनकी साधना और जीवनशैली का प्रमुख हिस्सा है। इसके अलावा यह उनके सांसारिक बंधनों से मुक्त होने का प्रतीक है। हालांकि, कभी-कभी ठंड या अन्य परिस्थितियों में वे वस्त्र का उपयोग कर सकते हैं।
2.तपस्या और ध्यान
नागा साधु अधिकतर समय एकांत में रहते हैं, जहां वे ध्यान और साधना करते हैं। वहीं कई साधु वर्षों तक मौन व्रत भी रखते हैं, जिससे उनकी आंतरिक ऊर्जा और मानसिक शक्ति में वृद्धि होती है।
3.भिक्षा पर जीवन
नागा साधु भिक्षा पर निर्भर रहते हैं, जो उनके त्याग और सादगी का प्रतीक है। वे किसी प्रकार की संपत्ति नहीं रखते और समाज से अन्न, वस्त्र, या अन्य आवश्यकताएं मांगते हैं। यह जीवनशैली सांसारिक संपत्ति और इच्छाओं से मुक्त होने का मार्ग है।
4.अहंकार का त्याग
अहंकार का त्याग करने के बाद नागा साधु सांसारिक जीवन से मुक्ति पा लेते हैं।उनके जीवन का उद्देश्य बस आत्मा की शुद्धि और ब्रह्मज्ञान प्राप्त करना होता है। इसके अलावा यह त्याग उन्हें विनम्रता और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।
छठ पूजा का पर्व आस्था, संयम और शुद्धता का प्रतीक है। इसे बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक मनाया जाने वाला छठ महापर्व सूर्य देव और छठी मईया की आराधना का पर्व है। इस साल यह 5 नवंबर 2024 को नहाय-खाय से शुरू होगा और 8 नवंबर को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ समाप्त होगा।
लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ पूजा की शुरुआत 5 नवंबर से नहाय खाय के साथ हो चुकी है। यह पर्व दिवाली के बाद मनाया जाता है और खासकर उत्तर भारत में इसका विशेष महत्व है।
छठ पूजा में खरना का दिन बहुत महत्व रखता है। इस दिन के बाद से व्रत करने वाले 36 घंटे तक बिना जल के उपवास रखते हैं। खरना के दिन व्रती नए मिट्टी के चूल्हे पर गुड़, दूध, और साठी के चावल से प्रसाद तैयार करते हैं।