महाकुंभ 2025 की शुरुआत में अब 1 महीने से भी कम समय बचा है। शाही स्नान के लिए तैयारियां पूरी कर ली गई है। प्रयागराज का त्रिवेणी संगम हिंदु धर्म के सबसे बड़े समागम के लिए तैयार है। कहा जाता है कि महाकुंभ में संगम तट पर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और व्यक्ति पापों से मुक्त हो जाता है। इसी कारण से बड़ी संख्या में अखाड़ों के साधु-संत संगम के तट पर शाही स्नान करने आते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। साधु-संतों के अलावा आम लोग भी इस बड़े समागम का हिस्सा बनने आते हैं और अपने पाप धोने के लिए पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। चलिए आपको त्रिवेणी संगम में शाही स्नान करने के महत्व के बारे में बताते हैं।
संगम का अर्थ मिलन होता है, यानी ऐसी जगह है, जहां 2 या उससे अधिक नदियों का मिलन होता है। प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का मिलन होता है। इसी कारण से यह शाही स्नान करने का अलग महत्व है। इसके अलावा त्रिवेणी संगम पर शाही स्नान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्थान ऋषियों और मुनियों की तपोभूमि माना जाता है। पुराणों के अनुसार, अमृत मंथन के दौरान अमृत की कुछ बूंदें यहां गिरी थीं, जिससे यह स्थान पवित्र बन गया। इसीलिए महाकुंभ में यहां स्नान करने से अमृत स्नान का पुण्य प्राप्त होता है।
महाकुंभ, कुंभ और अर्धकुंभ जैसे आयोजनों में साधु संत को सम्मान के साथ स्नान कराया जाता है। जिसके कारण इसे शाही स्नान कहा जाता है। इसके अलावा कुंभ या महाकुंभ के दौरान ग्रह और नक्षत्रों की विशेष स्थिति के कारण जल चमत्कारी हो जाता है। वहीं ग्रह नक्षत्र बेहद भी शुभ स्थिति में होते हैं। इसी कारण से स्नान को शाही कहा जाता है।
1) 14 जनवरी 2025
मकर संक्रांति के दिन पहला शाही स्नान है।
2) 29 जनवरी 2025
मौनी अमावस्या के दिन दूसरा शाही स्नान है।
3) 3 फरवरी 2025
बसंत पंचमी के दिन तीसरा शाही स्नान हैं।
4) 12 फरवरी 2025
माघी पूर्णिमा के दिन चौथा शाही स्नान है।
5) 26 फरवरी 2025
आखिरी शाही स्न्नान महाशिवरात्रि के दिन है।
एक समय श्री महादेवजी पार्वती के साथ भ्रमण करते हुए मृत्युलोक में अमरावती नगरी में आए। वहां के राजा ने शिव मंदिर बनवाया था, जो कि अत्यंत भव्य एवं रमणीक तथा मन को शांति पहुंचाने वाला था। भ्रमण करते सम शिव-पार्वती भी वहां ठहर गए।
भगवान शिव की महिमा सुनकर एक बार ऋषियों ने सूत जी से कहा- हे सूत जी आपकी अमृतमयी वाणी और आशुतोष भगवान शिव की महिमा सुनकर तो हम परम आनन्दित हुए।
भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था।
एक नगरमें एक बुढ़ियाके सात पुत्र थे, सातौके विवाह होगए, सुन्दर स्त्री घर में सम्पन्न थीं। बड़े बः पुत्र धंधा करते थे बोटा निठल्ला कुछ नहीं करता था और इस ध्यान में मग्न रहता था कि में बिना किए का खाता हूं।