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श्रावण में इस विधि से करें भगवान शिव की पूजा, होगा कई गुना लाभ (Shraavan Mein is Vidhi se karen Bhagavaan Shiv kee Pooja, hoga kaee Guna Laabh)

श्रावण में इस विधि से करें भगवान शिव की पूजा, होगा कई गुना लाभ (Shraavan Mein is Vidhi se karen Bhagavaan Shiv kee Pooja, hoga kaee Guna Laabh)

भगवान शिव की तीन रूपों में पूजा की जाती है। पहला शिवलिंग, दूसरा शंकर रूप और तीसरा रुद्र रूप। श्रावण (सावन) मास बेहद पवित्र माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, श्रावण मास में भगवान शिव की विधिवत पूजा करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। महादेव के इस सावन मास में महामृत्युंजय मंत्र, शिव सहस्त्रनाम, रुद्राभिषेक, शिवम हिमन्न स्त्रोत, महामृत्युंजय सहस्त्र नाम आदि मंत्रों का जाप करना श्रेष्ठ माना जाता है। यह माह मनोकामनाओं का इच्छित फल प्रदान करने वाला होता है।
 
सावन में ऐसे करें महादेव की पूजा :


सावन के महीने में मुख्य रूप से हरे, केसरिया, पीले, लाल और सफेद रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। भगवान शिव की पूजा के लिए पूजा के पहले से ही तैयारी करते समय 'ऊं नमः शिवाय' मंत्र का जाप निरंतर करते रहें। शिव पूजा शुरू करने पर आप सबसे पहले शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाएं। फिर भगवान शिव का जलाभिषेक करें।
 
शिव को चढ़ाएं सफेद चंदन


इसके बाद दूध, दही, घी, शक्कर और शहद से अभिषेक कर उन्हें पुन: शुद्ध जल से स्नान कराएं। इसके बाद भगवान शिव पर  सफेद चंदन, अक्षत, सफेद फूल, बेल पत्र, धतूरा, सुपारी, भस्म, शमी के पत्‍ते चढ़ाएं और फिर उन्हें सुगंधित फूल-माला अर्पित करें. फिर फल-मिठाइयों का भोग लगाएं और आखिर में पूजा खत्म होने पर उनकी आरती करें।
 
मूंग के दाने चढ़ाने से होता है लाभ:


आपको बता दें कि, सावन के दिनों में शिवलिंग पर हरी मूंग के 108 दाने चढ़ाने से कई लाभ होते हैं। ऐसा करने से व्यक्ति का मानसिक तनाव दूर होने के साथ साथ उसे सकारात्मक मिलती है। इसके अलावा ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करना भी सावन में काफी लाभकारी होता है। यदि आप श्रावण में व्रत करते हैं तो दिन फलाहार का सेवन करें और एक बार भोजन कर व्रत खोलें। याद रखें शिव के व्रत में अन्न और नमक का सेवन न करें।
 
भगवान शिव की पूजा में इन बातों का रखे खास ध्यान:


•    शिवलिंग पर हल्दी न चढ़ाएं।
•    पूजा के समय काला वस्त्र न पहनें।
•     सावन मास में शारीरिक शुद्धता के साथ-साथ इंद्रियों पर भी नियंत्रण रखना आवश्यक होता है।
•    भगवान शिव को केतकी का फूल भूलकर भी अर्पित नहीं करना चाहिए।
•    शिवलिंग का जलाभिषेक करते समय इस बात का ध्यान रखें कि जलधारा पतली और धीमी गति के साथ गिरे।
•    भगवान शिव की पूजा के दौरान कभी भी शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए।

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नर्मदा नदी की कथा

नर्मदा नदी पहाड़, जंगल और कई प्राचीन तीर्थों से होकर गुजरती हैं। वेद, पुराण, महाभारत और रामायण सभी ग्रंथों में इसका जिक्र है। इसका एक नाम रेवा भी है। माघ माह में शुक्ल पक्ष सप्तमी को नर्मदा जयन्ती मनायी जाती है।

नर्मदा जयंती कब है

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देश के प्रमुख सूर्य मंदिर

हिंदू धर्म में, सूर्यदेव का विशेष स्थान है। वे नवग्रहों में प्रमुख माने जाते हैं। साथ ही स्वास्थ्य, ऊर्जा और सकारात्मकता के प्रतीक हैं।

भीष्म अष्टमी कब है, शुभ मुहूर्त एवं योग

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