दिवाली हिंदू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार है। इसे भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा, पारंपरिक उपहार, रोशनी, सजावट, दीये, मिठाई आदि के लिए जाना जाता है। इसे ‘रोशनी का त्योहार’ भी कहा जाता है। यह हमें एक-दूसरे के करीब लाता है और पारस्परिक संबंधों को मजबूत बनाता है। दिवाली की सभी परंपराएं घर में हमेशा के लिए धन और सौभाग्य का स्वागत करने के लिए की जाती हैं। इसकी शुरुआत धनतेरस से होती है, जिसे धनत्रयोदशी भी कहा जाता है।
हिंदू पौराणिक कथाओं में सोने को पवित्र और शुद्धतम माना जाता है। इसलिए सबसे मूल्यवान वस्तु सोने में निवेश करने का यह सबसे शुभ दिन होता है। धनतेरस और दिवाली पर सोना खरीदना, देवी लक्ष्मी और भगवान कुबेर जी को अपने घर आमंत्रित करने के समान माना जाता है। धनतेरस के दिन लोग सौभाग्य, समृद्धि, धन और संपदा के प्रतीक के रूप में सोना-चांदी, कीमती रत्न, तांबे, पीतल और कांसे के नए बर्तन खरीदते हैं। फिर इनका उपयोग मां लक्ष्मी की पूजा करने के लिए किया जाता है। यह त्योहार अपने आप में धन और समृद्धि का प्रतीक है। दिवाली के दौरान सोना खरीदना सौभाग्य को आकर्षित करने वाला माना जाता है।
धनतेरस के दौरान समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक सोना-चांदी को विभिन्न रूपों में खरीदा जाता है। इसमें लोकप्रिय सोने के आभूषण, सिक्के, बार, सिल्लियां और लक्ष्मी जैसे देवताओं की सोने की परत चढ़ी मूर्तियां शामिल हैं। सोने के सिक्कों को शुभ माना जाता है। साथ ही ये निवेश के विकल्प के रूप में काम आते हैं। अधिक बड़े निवेश के लिए सोने की छड़ें और सिल्लियां पसंद की जाती हैं। इन त्योहारों के दौरान सोने की खरीद एक प्रसिद्ध परंपरा है, जो नई शुरुआत और समृद्धि की आशा का प्रतीक है। दिवाली पर सोना खरीदना न केवल एक परंपरा है, बल्कि यह निवेश करने का एक अच्छा तरीका भी है।
कार्तिक मास के दौरान लोग दिल खोल कर दान पुण्य करते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में बसे वैसे लोग जो गंगा किनारे नहीं हैं वे कार्तिक माह में गंगा किनारे आकर रहते हैं।
दू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष धार्मिक महत्व है। यह दिन भगवान विष्णु, देवी लक्ष्मी और चंद्र देव की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
सनातन धर्म में प्रत्येक तिथि का अपना विशेष महत्व है, जैसे एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है, वैसे ही त्रयोदशी तिथि महादेव भगवान शिव की प्रिय तिथि मानी जाती है।
सामा-चकेवा मिथिलांचल में भाई-बहन के प्रेम और अपनत्व का प्रतीक है। यह पर्व कार्तिक शुक्ल सप्तमी से कार्तिक पूर्णिमा तक नौ दिन चलता है।