दिल्ली स्थित किलकारी भैरव मंदिर को लेकर मान्यता है कि इसकी स्थापना पांडवों ने की थी। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के सुझाव पर पांडवों ने अपने किले की रक्षा के लिए इस मंदिर की नींव रखी थी। भीम स्वयं बाबा भैरव को काशी से लेकर आए थे। लेकिन भैरव बाबा ने शर्त रखी थी कि उन्हें रास्ते में कहीं भी उतारा गया तो वे वहीं विराजमान हो जाएंगे। भीम जब दिल्ली पहुंचे तो बाबा ने माया रची और उन्हें नीचे उतरवाया। इसके बाद बाबा ने अपनी एक जटा देकर कहा कि इसे किले में स्थापित करो जिससे वह वहीं से किलकारी मारकर रक्षा करेंगे।
मंदिर में दो मुख्य खंड हैं—दुधिया भैरव मंदिर और किलकारी भैरव मंदिर। पहले खंड में भक्त दूध चढ़ाते हैं वहीं दूसरे खंड में मदिरा अर्पित की जाती है। यह भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर माना जाता है जहां भगवान को शराब चढ़ाई जाती है। भक्तों का विश्वास है कि वे अपनी शराब की लत को छोड़ने की प्रतिज्ञा स्वरूप अपनी अंतिम शराब बाबा को चढ़ाते हैं।
यहां चढ़ाई गई मदिरा को प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है। हालांकि मंदिर परिसर में शराब की बिक्री पूरी तरह निषिद्ध है। मंदिर के महंत बताते हैं कि यह परंपरा आत्मसंयम और बुरी आदतों से मुक्ति का प्रतीक है।
मंदिर की बनावट उत्तर भारतीय शैली की है। पूरा आंतरिक हिस्सा सफेद संगमरमर से बना है और मंदिर की सभी मूर्तियां भी संगमरमर की हैं। परिसर में एक अनोखी चीज यह भी है—कंक्रीट की बनी एक गाय जो पीने के पानी के नल के रूप में काम करती है।
भैरव बाबा को कुत्ता बेहद प्रिय है और उन्हें अपना वाहन भी मानते हैं। इसलिए मंदिर परिसर में कई कुत्ते घूमते हुए नजर आते हैं। भैरव बाबा को तांत्रिक सिद्धियों का देवता माना जाता है और तांत्रिक साधना करने वाले श्रद्धालु भी यहां नियमित रूप से आते हैं।
मंदिर पहुंचने के लिए ब्लू लाइन मेट्रो से सुप्रीम कोर्ट या प्रगति मैदान मेट्रो स्टेशन पर उतरें। गेट नंबर 1 से बाहर निकलते ही मंदिर थोड़ी ही दूरी पर मिल जाएगा। मंदिर सुबह 5 बजे से दोपहर 12 बजे तक और दोपहर 3 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है।
किलकारी भैरव मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है बल्कि यह आस्था और आत्मसंयम की अनोखी मिसाल भी है। दिल्ली घूमने आए पर्यटकों के लिए यह एक खास और अद्वितीय अनुभव हो सकता है।
प्रत्येक महीने में एकादशी दो बार आती है—एक बार कृष्ण पक्ष में और दूसरी बार शुक्ल पक्ष में। कृष्ण पक्ष की एकादशी पूर्णिमा के बाद आती है, जबकि शुक्ल पक्ष की एकादशी अमावस्या के बाद आती है।
माघ मास में शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी कहते हैं। इसे तिल द्वादशी भी कहते हैं। भीष्म द्वादशी को माघ शुक्ल द्वादशी नाम से भी जाना जाता है।
पुराणों के अनुसार महाभारत युद्ध में अर्जुन ने भीष्म पितामह को बाणों की शैय्या पर लिटा दिया था। उस समय सूर्य दक्षिणायन था। तब भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार करते हुए माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन प्राण त्याग दिए थे।
हिंदू धर्म में भीष्म द्वादशी का काफी महत्व है। यह माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल रविवार, 9 फरवरी 2025 को भीष्म द्वादशी का व्रत रखा जाएगा।