Logo

एकांत कमरे में होता है खरना का व्रत

एकांत कमरे में होता है खरना का व्रत

खरना का व्रत एकांत या बंद कमरे में ही क्यों किया जाता है? जानिए क्या है मान्यता


छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इसी दिन से व्रतधारी प्रसाद ग्रहण कर 36 घंटे के निर्जला व्रत का आरंभ करते हैं। इस दिन खरना विशेष महत्व रखता है और इसे एकांत या बंद कमरे में संपन्न किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार व्रत की पवित्रता बनाए रखने के लिए इस दिन व्रती को किसी भी तरह की आवाज या बाहरी रुकावट से बचना चाहिए। व्रतियों का मानना है कि यह शांति और आस्था बनाए रखने का प्रतीक है। जिससे छठी मईया और सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है। 


क्यों एकांत में होता है खरना?


खरना के दिन व्रती एकांत या बंद कमरे में प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस परंपरा के पीछे कई धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं हैं। माना जाता है कि खरना के दौरान किसी भी तरह की बाहरी आवाज या व्यवधान व्रत की पवित्रता को प्रभावित कर सकती है। खरना का प्रसाद ग्रहण करने से पहले व्रतियों को शुद्धता और एकाग्रता की स्थिति में रहना आवश्यक होता है ताकि पूजा का पूरा लाभ प्राप्त हो सके। अगर इस समय कोई बाहरी आवाज या किसी व्यक्ति की उपस्थिति होती है तो व्रती को प्रसाद ग्रहण करने में बाधा उत्पन्न हो सकती है जिससे ये व्रत खंडित होने का डर रहता है। मान्यता के अनुसार इस दिन की शांति व्रत की कठिनाई को सहज बनाती है और व्रती का मनोबल बढ़ाती है।


खरना की विधि और शुभ मुहूर्त


खरना का व्रत दूसरे दिन होता है जिसे नहाय-खाय के अगले दिन संपन्न किया जाता है। इस दिन सुबह से ही व्रती स्नानादि कर शुद्ध हो जाते हैं और भगवान सूर्य को जल अर्पित करते हैं। शाम के समय व्रती मिट्टी के चूल्हे पर प्रसाद तैयार करते हैं। प्रसाद में मुख्य रूप से साठी के चावल, गुड़ और दूध से बनी खीर, गेहूं की रोटी और केले का भोग होता है।


पूजा विधि


  1. व्रती पूरे दिन निराहार रहते हैं और शाम के समय प्रसाद बनाने की तैयारी करते हैं।
  2. नए मिट्टी के चूल्हे पर खीर बनाई जाती है। इसके लिए दूध और गुड़ का उपयोग होता है जो खरना प्रसाद का मुख्य भाग है।
  3. प्रसाद को सबसे पहले छठ माता को अर्पित किया जाता है। व्रती इसे हाथ जोड़कर आस्था और श्रद्धा से ग्रहण करते हैं।
  4. प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती अपने निर्जला व्रत की शुरुआत करते हैं, जो अगली सुबह सूर्योदय पर अर्घ्य देने तक चलता है।


खरना का शुभ मुहूर्त


हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा मनाई जाती है। खरना के दिन व्रती सूर्योदय और सूर्यास्त के समय का विशेष ध्यान रखते हैं। खरना की पूजा शाम के समय संपन्न होती है। 2024 में, सूर्योदय प्रातः 06:37 बजे और सूर्यास्त शाम 05:32 बजे होगा। इस समय व्रती भगवान सूर्य की आराधना करते हैं।


छठ व्रत का महत्व


छठ पर्व विशेष रूप से भगवान सूर्य और छठी मैया की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। खरना के दिन प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत रखते हैं। इस व्रत को व्रतधारी संतान की सुख-समृद्धि, लंबी आयु और परिवार की समृद्धि के लिए करते हैं। यह व्रत श्रद्धा, भक्ति, और शुद्धता का प्रतीक है। छठ पूजा में खरना का दिन निर्जला व्रत की शुरुआत होती है। व्रतधारी इसे शांति और एकांत में करते हैं ताकि उनका मन पवित्र और एकाग्र बना रह सके।


........................................................................................................
कान छेदने के मुहूर्त

हिंदू धर्म में मानव जीवन में कुल 16 संस्कारों का बहुत अधिक महत्व है इन संस्कारों में नौवां संस्कार कर्णवेध या कान छेदने का संस्कार।

नवंबर-दिसंबर से लेकर साल 2025 तक यह हैं शादी के लिए सबसे शुभ मुहूर्त

हिन्दू धर्म में मुहुर्त का कितना महत्व है इस बात को समझने के लिए इतना ही काफी है कि हम मुहुर्त न होने पर शादी विवाह जैसी रस्मों को भी कई कई महिनों तक रोक लेते हैं।

नवंबर के शुभ मुहूर्त

देवशयनी एकादशी से लेकर देव उठनी एकादशी तक हिंदू धर्म में शुभ कार्य बंद रहते हैं। देव उठते ही सभी तरह के मंगल कार्य आरंभ हो जातें हैं।

ब्रह्मा जी की पूजा विधि

ब्रह्मा जी, जिन्हें सृष्टि के रचयिता के रूप में जाना जाता है, के कई मंदिर होने के बावजूद उनका सबसे प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के पुष्कर में स्थित है।

यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang