तुम्हे हर घडी माँ प्यार करेगी,
जरा माँ के दर पे तुम आकर के देखो,
झुलाएगी पलकों के झूले में तुझको,
बस एक बार माँ तुम बुला करके देखो,
तुम्हे हर घडी माँ प्यार करेगी,
जरा माँ के दर पे तुम आकर के देखो ॥
ज़माने से तुमको जो नही मिला है,
मिलेगा यही माँ को बतला के देखो,
नही बात कोई भी टलेगी तुम्हारी,
ये दावा है विनती सूना करके देखो,
तुम्हे हर घड़ी माँ प्यार करेगी,
जरा माँ के दर पे तुम आकर के देखो ॥
जिधर देखता हूँ चर्चा यही है,
कोई माँ के जैसा दूजा नही है,
कहोगे वो तुम भी जो मैं कह रहा हूँ,
भवन माँ भवानी के जाकर तो देखो,
तुम्हे हर घड़ी माँ प्यार करेगी,
जरा माँ के दर पे तुम आकर के देखो ॥
भुला करके बैठे थे हँसना सदा जो,
वो फूलो के जैसे मुस्का रहे है,
महकने लगेगा तुम्हारा भी जीवन,
ऐ “लख्खा” तू सर को झुका करके देखो,
तुम्हे हर घड़ी माँ प्यार करेगी,
जरा माँ के दर पे तुम आकर के देखो ॥
तुम्हे हर घडी माँ प्यार करेगी,
जरा माँ के दर पे तुम आकर के देखो,
झुलाएगी पलकों के झूले में तुझको,
बस एक बार माँ तुम बुला करके देखो,
तुम्हे हर घडी माँ प्यार करेगी,
जरा माँ के दर पे तुम आकर के देखो ॥
संतान के द्वारा श्राद्धकर्म और पिंडदान आदि करने पर पितरों को तृप्ति मिलती है, और वे अपनी संतानों को धन-धान्य और खुश रहने का आशीर्वाद देते हैं।
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में मनाए जाने वाले श्राद्ध को पितृ पक्ष कहते हैं। इस दौरान पूर्वजों का श्राद्ध उनकी तिथि के अनुसार श्रद्धा भाव से विधि-विधानपूर्वक किया जाता है।
सनातन धर्म में फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर शबरी जयंती मनाई जाती है। इस दिन व्रत और पूजन का विधान है। इस दिन भगवान राम के साथ माता शबरी का पूजन किया जाता है।
माता शबरी रामायण की एक महत्वपूर्ण पात्र हैं, जिन्होंने भगवान राम की भक्ति में अपना जीवन समर्पित किया था। शबरी ने भगवान राम और माता सीता की प्रतीक्षा में वर्षों तक वन में निवास किया था।