शिव ही बसे है कण कण में,
केदार हो या काशी,
द्वादश ज्योतिर्लिंग है,
हर दिशा में है कैलाशी,
शिव ही बसे हैं कण कण में,
केदार हो या काशी ॥
प्रभु राम भी करे है पूजा,
जिनकी रामेश्वर कहलाए,
कृष्ण प्रेम में नाचे भोले,
गोपेश्वर बन जाए,
अमलेश्वर घूमेश्वर शंकर,
भीमेश्वर अविनाशी,
द्वादश ज्योतिर्लिंग है,
हर दिशा में है कैलाशी,
शिव ही बसे हैं कण कण में,
केदार हो या काशी ॥
भस्म है ओढ़े देह पर महिमा,
महाकाल की भारी,
सोमनाथ मल्लिकार्जुन शंभू,
नागेश्वर त्रिपुरारी,
बैरागी जोगी है ऊंचे,
शिखरों का हैं वासी,
द्वादश ज्योतिर्लिंग है,
हर दिशा में है कैलाशी,
शिव ही बसे हैं कण कण में,
केदार हो या काशी ॥
चंद्र है सिर पे नाग गले में,
जटा में गंग समाए,
वैद्यनाथ भोले भंडारी,
डम डम डमरू बजाए,
त्रयंबकेश्वर शिव शंकर प्रभु,
राघव ये सुखराशि,
द्वादश ज्योतिर्लिंग है,
हर दिशा में है कैलाशी,
शिव ही बसे हैं कण कण में,
केदार हो या काशी ॥
शिव ही बसे है कण कण में,
केदार हो या काशी,
द्वादश ज्योतिर्लिंग है,
हर दिशा में है कैलाशी,
शिव ही बसे हैं कण कण में,
केदार हो या काशी ॥
हिंदू पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी का पर्व माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। कहते हैं कि इस दिन विद्या की देवी मां सरस्वती का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन सरस्वती पूजा की जाती है। इस साल बसंत पंचमी 2 फरवरी को मनाई जाएगी।
बसंत पंचमी सनातन धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्योहार विद्या, कला और संगीत की देवी सरस्वती को समर्पित है और हर साल माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है।
बसंत पंचमी का त्योहार हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह त्योहार ज्ञान, विद्या और कला की देवी सरस्वती को समर्पित है।
बसंत पंचमी का पर्व जो कि माघ माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और शुभ माना जाता है। यह त्योहार ज्ञान और बुद्धि की देवी मां सरस्वती की पूजा के लिए विशेष है जो कि वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक भी है।