घनश्याम तेरी बंसी,
पागल कर जाती है,
मुस्कान तेरी मोहन,
घायल कर जाती है ॥
घनश्याम तेरी बंसी,
पागल कर जाती है,
मुस्कान तेरी मोहन,
घायल कर जाती है ॥
सोने की होती तो,
क्या करते तुम मोहन,
ये बांस की होकर भी,
दुनिया को नचाती है ॥
घनश्याम तेरी बंसी,
पागल कर जाती है,
मुस्कान तेरी मोहन,
घायल कर जाती है ॥
तुम गोरे होते तो,
क्या कर जाते मोहन,
जब काले रंग पर ही,
दुनिया मर जाती है ॥
घनश्याम तेरी बंसी,
पागल कर जाती है,
मुस्कान तेरी मोहन,
घायल कर जाती है ॥
दुख दर्दों को सहना,
बंसी ने सिखाया है,
इसके छेद है सीने मे,
फ़िर भी मुस्काती है ॥
घनश्याम तेरी बंसी,
पागल कर जाती है,
मुस्कान तेरी मोहन,
घायल कर जाती है ॥
कभी रास रचाते हो,
कभी बंसी बजाते हो,
कभी माखन खाने की,
मन में आ जाती है ॥
घनश्याम तेरी बंसी,
पागल कर जाती है,
मुस्कान तेरी मोहन,
घायल कर जाती है ॥
आरती श्री वृषभानुसुता की, मंजुल मूर्ति मोहन ममता की।
त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि, विमल विवेक विराग विकासिनि।
आरति श्रीवृषभानुलली की, सत-चित-आनन्द कन्द-कली की॥
भयभन्जिनि भवसागर-तारिणी, पाप-ताप-कलि-कलुष-निवारिणी,
आरती श्री जनक दुलारी की, सीताजी श्रीरघुवर प्यारी की॥
आरती श्री जनक दुलारी की, सीताजी श्रीरघुवर प्यारी की॥
ॐ जय यमुना माता, हरि ॐ जय यमुना माता।
जो नहावे फल पावे, सुख सम्पत्ति की दाता॥