नवरात्रि में मां भगवती की दिव्यता और भव्यता के साथ नौ दिनों तक पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि नवरात्र के दौरान प्रतिदिन देवी दुर्गा की पूजा करने से मैया प्रसन्न होकर मनवांछित फल देती हैं। नवरात्रि से जुड़ी और भी कई मान्यताएं हैं जिनका अनुसरण माता के भक्त इन नौ दिनों में करते हैं।
मैया की आराधना के पावन पर्व नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का भी विशेष महत्व हैं। यह जीवन के बड़े से बड़े संकट को टालने वाला चमत्कारी अनुष्ठान है जो मां की आराधना का सबसे अनुठा और असरदार पाठ है। मान्यता है कि नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है, अनिष्ट का नाश होता है और परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है। दुर्गा सप्तशती के पाठ से दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों ही प्रकार के संताप दूर हो जाते हैं।
तो चलिए भक्त वत्सल पर शुरू करते हैं दुर्गा सप्तशती पाठ की महिमा और नियम से जुड़ी सभी जानकारी का यह लेख।
क्या है दुर्गा सप्तशती?
देवी माहात्म्य हिन्दू धर्म के सबसे श्रेष्ठ ग्रंथों में से एक है। इसमें देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर नामक राक्षस के वध वर्णन है। यह ग्रंथ मार्कण्डेय पुराण का एक अंश है। इसमें कुल 700 श्लोक हैं और हम इसे दुर्गा सप्तशती के नाम से जानते हैं। यह सृष्टि की उस प्रतीकात्मक व्याख्या का संग्रह है जो मार्कण्डेय मुनि और ब्रह्मा जी के मध्य देवी की महिमा पर हुई ज्ञान चर्चा से उत्पन्न हुई हैं।
मार्कण्डेय पुराण के कुछ मुख्य अंश ही दुर्गा सप्तशती हैं। इसे वेदव्यास के मार्कण्डेय पुराण से लिया गया है, इसलिए कई लोग इसे वेदव्यास जी की कृति मानते हैं। वैसे 18 पुराणों में मार्कंडेय पुराण का अपना अगल महत्व है।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के नियम
- इस दिव्य पाठ को करने के कुछ नियम हैं, जिनका पालन करने से ही अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होती है।
- पाठ शुरू करने से पहले संकल्प लें। नवरात्र के पहले दिन से दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करें।
- दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ करने से पहले पुस्तक को प्रणाम करें।
- माता रानी का ध्यान करने के बाद पाठ करना आरंभ करें।
- एक दिन में या फिर नौ दिनों में पूरे 13 अध्याय का पाठ पूर्ण करें।
- पाठ के दौरान ब्रह्मचर्य और पवित्रता का विशेष ध्यान रखें।
- दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय लाल आसन पर बैठें।
- सप्तशती की पुस्तक लेकर पाठ करने से फल की प्राप्ति नहीं होती है। इसलिए दुर्गा सप्तशती की पुस्तक को किसी चौकी पर लाल रंग के वस्त्र पर रखकर पाठ करें।
- दुर्गा सप्तशती पाठ को कहीं भी न रोकें। चतुर्थ अध्याय के बाद विराम ले सकते हैं। दुर्गा सप्तशती का पाठ बीच में छोड़ें।
- दुर्गा सप्तशती के पाठ करते समय बहुत तेज या बहुत धीमी गति से पाठ न करें। शब्दों का उच्चारण स्पष्ट और लयबद्ध तरीके से करें।
- दुर्गा सप्तशती का पाठ लाल आसन या कुश के आसन पर बैठकर करें।
दुर्गा सप्तशती के अचूक उपाय
- यदि दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण अध्याय का पाठ आप नहीं कर सके तो ऐसे में सिर्फ चतुर्थ अध्याय का पाठ करने से भी इसका संपूर्ण लाभ मिलता है।
- दुर्गा सप्तशती के चतुर्थ अध्याय का पाठ करने से मां दुर्गा के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है। यह जीवन की सभी परेशानियों से छुटकारा दिलाता है। दुर्गा सप्तशती का पाठ सभी प्रकार की कामना को पूर्ण करने वाला है।
जानिए दुर्गा सप्तशती के किस अध्याय का पाठ करने से क्या लाभ होता है?
- प्रथम अध्याय – सभी प्रकार की चिंताओं से मुक्ति मिलती है।
- द्वितीय अध्याय – हर तरह की शत्रु-बाधा दूर होती है। कोर्ट-कचहरी में विजय प्राप्त होती है।
- तृतीय अध्याय – शत्रुओं का नाश होता है।
- चतुर्थ अध्याय – मां दुर्गा के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है।
- पंचम अध्याय – भक्ति, शक्ति और देवी-दर्शन मिलता है।
- षष्ठ अध्याय – दुख, दरिद्रता, भय दूर होता है।
- सप्तम अध्याय – सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- अष्टम अध्याय – वशीकरण और मित्रता करने के लिए यह विशेष उपाय है।
- नवम अध्याय – संतान की प्राप्ति और उन्नति के लिए किया जाता है।
- दशम अध्याय – दसवें अध्याय का फल नौवें अध्याय के समान ही है।
- एकादश अध्याय – भौतिक सुविधाएं प्रदान करता है।
- द्वादश अध्याय – मान-सम्मान और लाभ में वृद्धि होती है।
- त्रयोदश अध्याय – मोक्ष और भक्ति के लिए यह सबसे अच्छा है।
दुर्गा सप्तशती का मूल मंत्र
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।
केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके ऊंके
केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके ऊंके
कान्हा रे थोडा सा प्यार दे,
चरणो मे बैठा के तार दे,
कान्हा तेरी कबसे,
बाट निहारूं,
केवट राम का भक्त है
दोनों चरणों को धोना पड़ेगा,