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श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् (Durga Ashtottara Shatanama Stotram)

श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् (Durga Ashtottara Shatanama Stotram)

दुर्गाअष्टोत्तरशतनामस्तोत्र एक पवित्र हिंदू मंत्र या स्तोत्र है, जिसमें देवी दुर्गा के 108 नामों का वर्णन है। यह स्तोत्र दुर्गा सप्तशती के अंदर आता है और देवी दुर्गा की महिमा और शक्ति का वर्णन करता है। इस स्तोत्र में देवी दुर्गा के विभिन्न नामों का उल्लेख है, जो उनकी विभिन्न शक्तियों और गुणों को दर्शाते हैं। इन नामों का जाप करने से व्यक्ति को देवी दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।  प्रथम दिन “श्री दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र” का पाठ प्रारंभ करने के लिए हाथ में थोड़ा जल लें  और संकल्प कर लें। सिर्फ पहले दिन ही संकल्प लें और उसके बाद रोजाना सुबह नहाकर इसी प्रक्रिया से माता की श्रद्धा पूर्वक पूजन करें और ‘श्री दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र’ का पाठ करें।


पाठ करने के लिए शुभ दिन और समय 


किसी भी शुक्रवार और नवरात्रि के नौ दिनों में इस मंत्र का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। शुभ समय की बात करें तो नवरात्र के नौ दिन में श्रीदुर्गाअष्टोत्तरशतनामस्तोत्र का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस पाठ को करने के लिए सबसे अच्छा समय ब्रह्म मुहूर्त का होता है। राहुकाल में पाठ करना अशुभ माना गया है। ऐसे में इस पाठ के लिए राहु काल का त्याग करना चाहिए।  इसके अलावा नीचे दिए गए समय पर पाठ कर सकते हैं


1. सुबह करीब 4 बजे से लेकर 5 बजकर 30 मिनट (ब्रह्म मुहूर्त)

2. दोपहर 12:00 से 2:00 बजे तक (मध्याह्न)

3. शाम 4:00 से 6:00 बजे तक (संध्या)

4. रात 8:00 से 10:00 बजे तक (रात)


श्रीदुर्गाअष्टोत्तरशतनामस्तोत्र का पाठ करने की विधि 


1. स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।

2. एक शांत और पवित्र स्थान पर बैठें।

3. देवी दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति के सामने बैठें।

4. हाथ में फूल और अक्षत लें।

5. श्रीदुर्गाअष्टोत्तरशतनामस्तोत्र का पाठ करें।

6. पाठ के बाद देवी दुर्गा को प्रणाम करें और उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करें।


श्रीदुर्गाअष्टोत्तरशतनामस्तोत्र का पाठ करने के लाभ 


इस स्तोत्र के प्रशंसा करते हुए स्वयं भगवान शंकर जी ने इसे पढ़ने के लाभ बताए हैं और कहा है कि- जो प्रतिदिन दुर्गा जी के इस स्तोत्र का पाठ करेगा, उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं रहेगा। वह धन-धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्म आदि चार पुरुषार्थ तथा अंत में सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है। उसके जीवन में कभी कोई दुख नहीं रहता। माता भगवती दुर्गा जी उसके लिए सर्वदा सहायक होती है और उसकी सर्वदा रक्षा करती है, उसकी जीवन में उसको परम सुख प्रदान करती है।


दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम पाठ:


ईश्वर उवाच


शतनाम प्रवक्ष्यामि श्रृणुष्व कमलानने।

यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती॥1॥


ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी।

आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी॥2॥


पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः।

मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः॥3॥


सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी।

अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः॥4॥


शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा।

सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी॥5॥


अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती।

पट्टाम्बरपरीधाना कलमञ्जीररञ्जिनी॥6॥


अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी।

वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता॥7॥


ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा।

चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः॥8॥


विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा।

बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना॥9॥


निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी।

मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी॥10॥


सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी।

सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा॥11॥


अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी।

कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः॥12॥


अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा।

महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला॥13॥


अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी।

नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी॥14॥


शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी।

कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी॥15॥


य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम्।

नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति॥16॥


धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च।

चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम्॥17॥


कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम्।

पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम्॥18॥


तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि।

राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात्॥19॥


गोरोचनालक्तककुङ्कुमेन सिन्दूरकर्पूरमधुत्रयेण।

विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः॥20॥


भौमावास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते।

विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम्॥21॥


॥ इति श्रीविश्वसारतन्त्रे दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं समाप्तम् ॥


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