Logo

दिव्य सिंहासिनी दरबार, गोपालगंज उत्तर प्रदेश

दिव्य सिंहासिनी दरबार, गोपालगंज उत्तर प्रदेश

बीच जंगल में बसा है मां भवानी का दिव्य सिंहासिनी दरबार, भक्त रहषु की पुकार पर आईं थीं माता 


बिहार के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक गोपालगंज जिले के थावे में माँ सिंहासिनी का भव्य दरबार सजता है। नवरात्र में सज-धज कर तैयार इस पवित्र धाम में सुबह 04 बजे से ही मां की मंगला आरती शुरू हो जाती है। इसके साथ ही नवरात्रि के प्रथम दिन से थावे मां भवानी के दरबार में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ भी उमड़ती है। बिहार और उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से आने वाले लाखों भक्तों के लिए ये स्थल आस्था का केंद्र है। मंदिर में आने वालों को कष्ट ना हो इसके लिए नवरात्रि में व्यापक तैयारियां की जाती हैं। 


भक्त रहषु और राजा मनन सिंह की कहानी 


गोपालगंज में थावे वाली माता के मंदिर को कौन नहीं जानता होगा। इस मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार इस मंदिर में मां अपने भक्त रहषु के लिए असम के कामाख्या से थावे आईं थीं और साक्षात दर्शन दिए थे। इसी से जुड़ी दूसरी मान्यता ये है कि एक समय में बिहार के गोपालगंज जिले के थावे प्रखण्ड में एक प्रतापी राजा हुआ करता था, जिसका नाम मनन सिंह था। मान्यता है कि हथुआ के राजा मनन सिंह स्वयं को ही मां दुर्गा का सबसे बड़ा और अनन्य भक्त मानते थे। उन्हें गर्व था कि उनसे बड़ा मां का कोई दूसरा भक्त नहीं है। तभी अचानक राजा के राज्य में अकाल पड़ गया। उसी दौरान थावे प्रखण्ड के भवानीपुर गांव में माता रानी का एक भक्त रहषु निवास करता था। 


अकाल में भी मिलता था अन्न


कहानी की मानें तो रहषु घास काट कर माँ की पूजा करता था जिससे घास अन्न में बदल जाता था। यही वजह थी कि वहां के लोगों को खाने के लिए अनाज मिलने लगा। यह बात राजा के कान तक पहुंची। लेकिन राजा को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ। राजा रहषु के विरोध में आ गया। और उसे ढोंगी कहने लगा और उसने रहषु से कहा कि अगर तुम मां भवानी के सच्चे भक्त हो तो मां को यहां बुलाओ। इस पर रहषु ने राजा से कहा कि अगर मां यहां आई तो राज्य को बर्बाद कर देगी। लेकिन राजा नहीं माने। 


मस्तक फटा तो दिखा मां का कंगन


बस फिर क्या था कि रहषु के बुलाने पर मां आई और कोलकता, पटना होते हुए गोपालगंज में प्रवेश कर गईं। इसके बाद आंधी पानी तूफान बिजली की गड़गड़ाहट से राजा का महल टूट कर गिरने लगा। तब भक्त रहषु ने राजा से विनती की और कहा "हे राजन अभी भी समय है आप मान जाइए नहीं तो माँ के आने के बाद आपका पूरा राज पाट खत्म जाएगा" फिर भी राजा नहीं माने। तो भक्त रहषु को मजबूरन मां को थावे बुलाना पड़ा। माँ के आते ही आंधी पानी से पूरा राजभवन गिर गया। 


भक्त के अंदर प्रवेश कर गयी मां


जिसके बाद भक्त रहषु में माँ प्रवेश कर गईं और भक्त रहषु का मस्तक फट गया और मां के दाहिने हाथ का कंगन दिखा  इसके बाद राजा मनन सिंह को माँ का दर्शन प्राप्त हुआ और उनका स्वर्गवास हो गया। इसके बाद मां सिंहासनी थावे भवानी के नाम से प्रसिद्ध हो गई। इसके बाद से हथुआ राज की ओर से भव्य थावे मंदिर बनवाया गया। तब से शक्तिपीठ थावे के नाम से ये मंदिर प्रसिद्ध हो गया। यहां, दूर-दूर से लोग पूजा अर्चना के लिए पहुंचने लगे। 


ऐसे पहुंच सकते हैं यहां 


नवरात्रि के 09 दिनों में यहां विशेष पूजा अर्चना की जाती है। बता दे कि साल में दो बार चैत्र और शारदीय नवरात्रों में मेला भी लगता है। इसके अलावा मंदिर में सोमवार और शुक्रवार को विशेष पूजा होती है। यही नहीं सावन के महीने में भी यहां देवी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इस मंदिर को लोग थावे वाली माता का मंदिर, सिंहासनी भवानी और रहषु भवानी के नाम से भी जानते है। मंदिर में आसानी से दर्शन हो इसके लिए जिला प्रशासन भी मुस्तैद रहता है। शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों में यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है। यह मंदिर गोपालगंज से करीब छह किलोमीटर दूर गोपालगंज से सिवान जाने वाले मार्ग पर थावे नाम की जगह पर बना है। ये मंदिर चारो तरफ से जंगलों से घिरा हुआ है। और इस मंदिर का गर्भकाल भी काफी पुराना बताया जाता है। 


........................................................................................................
माघ शुक्ल की जया नाम की एकादशी (Magh Shukal Ki Jya Naam Ki Ekadashi)

पाण्डुनन्दन भगवान् कृष्ण से हाथ जोड़ कर नम्रता पूर्वक बोले हे नाथ ! अब आप कृपा कर मुझसे माघ शुक्ल एकादशी का वर्णन कीजिए उस व्रत को करने से क्या पुण्य फल होता है।

फाल्गुन कृष्ण विजया नाम एकादशी व्रत (Phalgun Krishna Vijaya Naam Ekaadashi Vrat)

इतनी कथा सुन महाराज युधिष्ठिर ने फिर भगवान् श्रीकृष्ण से पूछा कि अब आप कृपाकर फाल्गुन कृष्ण एकादशी का नाम, व्रत का विधान और माहात्म्य एवं पुण्य फल का वर्णन कीजिये मेरी सुनने की बड़ी इच्छा है।

फाल्गुन शुक्ल आमलकी नाम एकादशी व्रत (Falgun Shukal Aamlaki Naam Ekadashi Vrat)

एक समय अयोध्या नरेश महाराज मान्धाता ने प अपने कुल गुरु महर्षि वसिष्ठ जी से पूछा-भगवन् ! कोई अत्यन्त उत्तम और अनुपम फल देने वाले व्रत के इतिहास का वर्णन कीजिए, जिसके सुनने से मेरा कल्याण हो।

चैत कृष्ण पापमोचनी एकादशी (Chait Krishna Papamochani Ekadashi)

इतनी कथा सुनकर महाराज युधिष्ठिर बोले हे भगवन् ! आपके श्रीमुख से इन पवित्र कथाओं को सुन मैं कृतकृत्य हो गया।

यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang