गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं का पूजन किए जाने का विधान है। 10 महाविद्या की दूसरी शक्ति देवी तारा है। तारा देवी भक्तों को सभी दुखों से तारने वाली है। देवी तारा को हिंदू धर्म की ही भांति बौद्ध धर्म में भी अत्यंत पूजनीय माना गया है। आज हम यहां आपको तारा देवी के मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। देवो की भूमि हिमाचल प्रदेश अपनी अलौकिक सुंदरता दैवीय स्थलों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में स्वर्ग की देवी मां तारा का वास है। शिलमा के शोघी इलाके की ऊंची पहाड़ी पर मां तारा विराजमान है। यहां मां तारा के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से भक्तगण पहुंचते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त मां तारा के दरबार में पहुंचता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। अपनी दिव्य सुंदरता और आध्यात्मिक शांति के लिए प्रसिद्ध ये मंदिर हिमाचल के लोगों के लिए आस्था का केंद्र हैं। तारा देवी मंदिर शिमला से करीबन 18 किलोमीटर की दूरी पर हैं। शोघी की पहाड़ी पर बना ये मंदिर समुद्र तल से 1 हजार 851 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भक्तों के लिए मंदिर तक पहुंचने के लिए बेहतरीन सुविधाएं उपलब्ध है। कहा जाता है कि 250 साल पहले
मां तारा को पश्चिम बंगाल से शिमला लाया गया
था। सेन काल का एक शासक मां तारा की मूर्ति बंगाल से शिमला लाया था। मां तारा को पश्चिम बंगाल से शिमला लाया गया तारा देवी का इतिहास करीबन 250साल पुराना है। कहा जाता है कि एक बंगाल के सेन राजवंश के राजा शिमला आए थे। एक दिन गने जंगलो के बीच शिकार खेलने में हुई थकान के बाद राजा भूपेन्द्र सेन को नींद आ गई। सपने में राजा ने मां तारा के साथ उनके द्वारपाल श्री भैरव और भगवान हनुमान को आम और आर्थिक रुप ले सक्षम आबादी के सामने उनका अनावरण करने का अनुरोध करते देखा। तब फिर सपने से प्रेरित होकर राजा भूपेन्द्र सेन ने 50 बीघा जमीन दान कर मंदिर का निर्माण कार्य शुरु किया। मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हो जाने के बाद मां तारा की मूर्ति को वैष्णव परंपरा के अनुसार स्थापित किया गया। ये मूर्ति लकड़ी से तैयार करवाई गई थी। कुछ समय बाद राजा भूपेन्द्र के वंशज बलवीर सेन को भी सपने में मां तारा के दर्शन हुए। इसके बाद बलवीर सिंह ने मंदिर में अष्टधातु से बनी मां तारा देवी की मूर्ति स्थापित करवाई और मंदिर का पूर्व रुप से निर्माण करवाया।
दुर्गा मां की नौ बहनों में से एक है मां तारा
कहते हैं कि माता तारा, दुर्गा मां की नौवीं बहन है। तारा, एकजुट और नील सरस्वती माता तारा के तीन स्वरुप हैं। बृहन्नील ग्रंथ में माता तारा के तीन स्वरुपों के बारे में बताया गया है। सबको तारने वाली मां तारा की पूजा हिंदू और बौद्ध दोनों की धर्मों में की जाती है। नवरात्रों में माता के दरबार में श्रद्वालु बड़ा संख्या में पहुचंते हैं। नवरात्र में माता की दिव्य मूर्ति के दर्शन पाने के लिए लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं।
बसंत पंचमी का पर्व जो कि माघ माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और शुभ माना जाता है। यह त्योहार ज्ञान और बुद्धि की देवी मां सरस्वती की पूजा के लिए विशेष है जो कि वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक भी है।
बसंत पंचमी का त्योहार जो कि हर साल माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। जो इस साल 2 फरवरी 2025 को मनाया जाएगा। शिक्षा, बुद्धि और कला के क्षेत्र में उन्नति के लिए बेहद शुभ माना जाता है।
बसंत पंचमी का पर्व ज्ञान, विद्या और समृद्धि का प्रतीक है। यह दिन पूरी तरह से माता सरस्वती को समर्पित है, और इस दिन उनकी पूजा का विधान है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन मां सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। इसी कारण से हर वर्ष इस तिथि को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है।