प्रयागराज को तीर्थों का राजा कहा जाता है। इस शहर में हिंदुओं के कई धार्मिक स्थान मौजूद हैं। इन्हीं में से एक है प्रयागराज का विश्व प्रसिद्द त्रिवेणी संगम। महाकुंभ में इस संगम पर स्नान करने के लिए करोड़ों श्रद्धालु आते हैं।पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक त्रिवेणी संगम पर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और पापों से मुक्ति मिलती है। माना जाता है कि यहां गंगा,यमुना और सरस्वती नदी का मिलन होता है। गंगा और यमुना को तो यहां मिलते देखा जा सकता है। लेकिन सरस्वती नदी यहां अदृश्य है, ऐसे में बहुत लोगों के मन में सवाल उठता है कि सरस्वती नदी का रहस्य क्या है। चलिए आज इसी रहस्य से पर्दा उठाते हैं।
सरस्वती नदी का उल्लेख हिंदू धर्म के कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। ऋग्वेद में सरस्वती को "नदीतमा" कहा गया है।इस शब्द का अर्थ श्रेष्ठ नदी होता है। वहीं महाभारत में भी कहा गया है कि सरस्वती नदी अपने अंतिम छोर पर लुप्त हो जाती है। यही ज्रिक प्रयागराज के संगम में उसकी अदृश्य उपस्थिति का आधार बनाती है। वहीं सरस्वती नदी के लुप्त होने का आध्यात्मिक कारण भी है। जिसके कारण यह संगम इतना पवित्र है। हिंदू धर्म के अलावा सरस्वती नदी का ज्रिक कई ग्रीक और पर्शियन किताबों में भी मिला है।
वहीं वैज्ञानिक कारण की बात करें तो कुछ रिसर्च में सामने आया है कि हड़प्पा सभ्यता के दौरान य सरस्वती नदी एक प्रमुख नदी थी। इसे हड़प्पा सभ्यता का जीवनदायी माना जाता था। इस सभ्यता के लोग इस नदी के किनारे खेती करते थे और व्यापार करते थे। नदी के किनारे बड़े-बड़े शहर बसे हुए थे। यह हरियाणा और राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों से गुजरती थी। लेकिन साल दर साल प्रकृति में हुए परिवर्तनों के कारण वह विलुप्त हो गई और भूमिगत हो गई।
इस साल होली का त्योहार 14 मार्च को मनाया जाएगा। आपको बता दें कि होली के ठीक दो दिन बाद राहु और केतु अपना नक्षत्र बदलेंगे।
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य और चंद्र ग्रहण दोनों को बहुत ही अशुभ घटनाएँ माना जाता है। इनका असर न केवल देश-दुनिया पर, बल्कि राशिचक्र की सभी राशियों पर भी पड़ता है।
मसान होली दो दिवसीय त्योहार माना जाता है। मसान होली चिता की राख और गुलाल से खेली जाती है। काशी के मणिकर्णिका घाट पर साधु-संत इकट्ठा होकर शिव भजन गाते हैं और नाच-गाकर जीवन-मरण का जश्न मनाते हैं और साथ ही श्मशान की राख को एक-दूसरे पर मलते हैं और हवा में उड़ाते हैं। इस दौरान पूरी काशी शिवमय हो जाती है और हर तरफ हर-हर महादेव का नाद सुनाई देता है।
होली का पर्व हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार रंगों के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठानों का भी प्रतीक है। होलिका दहन से पहले पूजा करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।