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कौन हैं हंसराज बाबा

कौन हैं हंसराज बाबा

अपनों से दिल टूटा तो बैरागी बने 'हंसराज बाबा', साइकिल से कर रहे धार्मिक यात्रा, जानें पूरी कहानी


कहते हैं जब भगवान पर आस्था होती है तो आपकी जिंदगी भगवान की हो जाती है। उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती के रहने वाले हंसराज बाबा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। उन्होंने अपनों से मिले दुख और अन्याय के कारण अपने जीवन को वैराग्य की ओर मोड़ दिया। बचपन में ही पिता का देहांत हुआ और भाइयों ने उन्हें घर में हिस्सेदारी से वंचित कर दिया। परिवार से मिली चोट ने उन्हें भगवान की भक्ति में लीन कर दिया। तो आइए, इस आर्टिकल में हंसराज बाबा के जीवन की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं। 


कौन हैं हंसराज बाबा? 


हंसराज अपने जीवन से निराश होकर कुछ सामान लेकर साइकिल पर सवार होकर देशभर के धार्मिक स्थलों की यात्रा पर निकल पड़े हैं। उनकी माने तो “जब आपके अपनों ने ही आपको दुख पहुंचाया हो और बात आपके दिल को ठेस पहुंचा जाए तो भगवान की भक्ति में डूबने का ही मन करता है।” हंसराज बाबा भी अपने लोगों से आहत होकर अपने परिवार को छोड़कर बाबा बन गए हैं। हंसराज अपनी कहानी बताते हुए रोने लगते हैं। हंसराज बाबा साइकिल से वृंदावन से कुंभ नगरी प्रयागराज पहुंचे हैं। वे ना केवल वेश-भूषा से बल्कि मन से भी वैरागी ही प्रतीत होते हैं। 


अभी पूरी नहीं हुई है बाबा की धार्मिक यात्रा 


हंसराज बाबा कहते हैं कि “दुनिया के सारे रिश्ते-नाते झूठे हैं। एक ईश्वर के प्रेम में ही आपको कोई दुख नहीं होता है। उनकी माने तो उन्होंने जैसे ही संगम का जल अपने अंजुली में भरा। उनकी सैकड़ों किलोमीटर की साइकिल यात्रा की सारी थकान गायब हो गई। हंसराज बाबा को अभी आगे गंगासागर जाना है। लेकिन बाबा की विनम्रता देखकर साफ पता चलता है कि उनके अंदर ईश्वर के प्रति असीम श्रद्धा जाग उठी है।

बता दे कि हंसराज उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती के रहने वाले है। दैनिक जीवक को त्यागकर बाबा का रूप धारण कर लिया है और देशभर के मंदिर में स्थापित भगवान के दर्शन को निकल पड़े हैं।  उनकी माने तो महाकुंभ की वजह से कुछ वे दिन संगम की धरती पर भी बिताएंगे। और इसके बाद अपनी यात्रा पुन: शुरू करेंगे। 


हंसराज कैसे बन गए बाबा? 


बाबा बनने के पीछे वजह यही है कि उन्हें उनके अपनों ने ही काफी ठेस पहुंचाई है। बाबा जब छोटे थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया और उनके भाइयों ने उन्हें घर में हिस्सा नहीं दिया। वे दर-दर भटकने को मजबूर हो गए। इस वजह से बाबा अपने परिवार से परेशान हो गए और ईश्वर में आस्था रखने लगे। उन्होंने अपनी साइकिल पर कुछ सामान और छाता रखा और भगवान के दर्शन के लिए निकल पड़े। सबसे पहले वे मेरठ गए। फिर अयोध्या। इसके बाद वे राजस्थान गए और इस तरह वे भारत के कई धार्मिक स्थलों से होते हुए प्रयागराज संगम पहुंचे हैं। यहां पहुंचकर उन्होंने सबसे पहले मां गंगा को नमन किया। उन्होंने गंगाजल पिया। फिर उन्होंने जलाभिषेक किया और फिर वे साधु-संतों के दर्शन के लिए कुंभ मेला क्षेत्र में चले गए।



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