उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है। 48 दिनों तक चलने वाले इस विशाल धार्मिक मेले में लाखों श्रद्धालु और साधु-संत देश-विदेश से आने वाले हैं। इस भीड़ में एक नाम जो खास तौर पर ध्यान खींच रहा है, वह है असम के गंगापुरी महाराज, जिन्हें छोटू बाबा के नाम से भी जाना जाता है।
छोटू बाबा ने दावा किया है कि उन्होंने पिछले 32 सालों से स्नान नहीं किया है।उन्होंने कहा, "यह मेला आत्मा से आत्मा का जुड़ाव होना चाहिए, इसीलिए मैं यहां हूं।" 57 वर्षीय और मात्र 3 फीट 8 इंच लंबे इस साधु ने स्नान न करने की अपनी वजह बताई है। उनका कहना है, "मैं स्नान नहीं करता क्योंकि मेरी एक इच्छा है जो पिछले 32 सालों से पूरी नहीं हुई है।" उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वह गंगा में स्नान नहीं करेंगे। आइए छोटू बाबा के बारे में भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
महाकुंभ मेला अपनी गंगा स्नान की परंपरा के लिए जाना जाता है। इस मेले में देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले लाखों श्रद्धालु पवित्र गंगा जल में डुबकी लगाते हैं। कुछ लोग किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए, तो कुछ अपनी मनोकामना पूरी होने पर आभार प्रकट करने के लिए यह पवित्र स्नान करते हैं। हालांकि, गंगापुरी महाराज, जिन्हें छोटू बाबा के नाम से भी जाना जाता है, इस बार भी गंगा नदी में स्नान नहीं करेंगे। यह उनकी 32 साल की पुरानी परंपरा है जिसके पीछे का कारण अभी तक किसी के समझ में नहीं आया है।
गंगापुरी महाराज, जूना अखाड़े से जुड़े एक नागा संत हैं। वे असम की प्रसिद्ध कामाख्या पीठ से भी गहराई से जुड़े हुए हैं। उनकी सादगी, त्याग और आध्यात्मिक गहनता ने उन्हें लाखों लोगों के दिलों में जगह दिलाई है। हाराज का जीवन बेहद सादा है। वे संसार के मोह-माया से दूर रहकर आध्यात्मिक साधना में लीन रहते हैं।
महाराज में गहरी आध्यात्मिक शक्ति है। लोग उनकी उपस्थिति में शांति और आशीर्वाद का अनुभव करते हैं। वे समाज सेवा के कार्यों में भी सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। छोटू बाबा अपनी कद-काठी के साथ-साथ अपनी गूढ़ और आध्यात्मिक बातों के लिए भी मशहूर हैं। अन्य संतों और श्रद्धालुओं का मानना है कि भले ही वे शारीरिक रूप से छोटे हों, लेकिन उनकी समझ और बातें बहुत गहरी हैं। वे अपनी छोटी कद-काठी को कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत मानते हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि भले ही वे महाकुंभ में आए हैं, लेकिन वे किसी भी स्नान पर्व में भाग नहीं लेंगे।
महाकुंभ के पावन पर्व पर गंगापुरी महाराज की उपस्थिति ने एक नई चेतना का संचार किया है। उनके दर्शन मात्र से ही भक्तों और साधु-संतों में एक अद्वितीय उत्साह और आध्यात्मिक जागृति का संचार हुआ है। महाराज जी की विलक्षण साधना और उनके जीवन दर्शन ने लोगों के मन में गहरी छाप छोड़ी है।
गंगापुरी महाराज का मानना है कि सच्ची साधना का अंतिम लक्ष्य आत्मा और परमात्मा का मिलन है। उन्होंने कहा है कि उनकी समस्त साधना इसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए समर्पित है। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से सिद्ध किया है कि जब कोई व्यक्ति आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर होता है तो वह अपने भीतर की शक्ति को पहचान लेता है और उसे स्वीकार करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।
महाराज जी की इसी साधना और उनके व्यक्तित्व ने लोगों को प्रेरित किया है कि वे भी अपने जीवन में आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हों। उनके विचारों ने भक्तों और साधु-संतों के बीच गहन चर्चा को जन्म दिया है। लोग उनके जीवन दर्शन को समझने और अपनाने के लिए उत्सुक हैं।
वसंत पूर्णिमा की विशेष पूजा से लेकर अन्य धार्मिक गतिविधियों तक, इस पूर्णिमा को वर्षभर में विशेष महत्व दिया जाता है।
डोल पूर्णिमा का त्यौहार मुख्य रूप से बंगाल, असम, त्रिपुरा, गुजरात, बिहार, राजस्थान और ओडिशा में मनाया जाता है। इस दिन राधा-कृष्ण की मूर्ति को पालकी पर बिठाया जाता है और भजन गाते हुए जुलूस निकाला जाता है।
चैत्र माह हिंदू पंचांग का पहला महीना होता है। इसे हिंदू नववर्ष की शुरुआत के रूप में देखा जाता है। इसके अलावा यह वसंत ऋतु के खत्म होने का प्रतीक भी है। इस महीने में कई महत्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं, जो हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखते हैं। यह त्योहार हमें धर्म, संस्कृति और परंपराओं से जोड़ते हैं।
नवरात्रि का अर्थ नौ रातें होता है, जो हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्योहार साल में दो बार मनाया जाता है। चैत्र और शारदीय नवरात्रि। इस दौरान मां दुर्गा की पूजा आराधना की जाती है। उनके नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। चैत्र नवरात्र का खास महत्व है।