संसार के सभी जीव-जंतु जीवित रहने हेतु भोजन पर निर्भर रहते हैं। सनातन हिंदू धर्म में देवी अन्नपूर्णा को अन्न के भंडार और इसकी पूर्ति करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। देवी अन्नपूर्णा की पूजा के पीछे एक पौराणिक कथा है। ये कथा शिवजी से जुड़ी हुई है। दरअसल, इस कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी और पृथ्वी पर आकर सभी इंसानों में अन्न वितरित किया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसके बाद कभी भी पृथ्वी पर अन्न और जल की कमी नहीं आई।
एक बार भगवान शिव और देवी पार्वती पासे का खेल खेल रहे थे। देवी पार्वती ने भगवान शिव द्वारा दांव पर लगाई गई हर चीज जीत ली, जिसमें उनका त्रिशूल, नाग और कटोरा जैसी चीजें भी शामिल थीं। जब पासे का खेल समाप्त हुआ तो भगवान शिव एक जंगल में चले गए जहां उनकी मुलाकात भगवान विष्णु से हुई। भगवान विष्णु ने उन्हें फिर से खेल खेलने के लिए कहा। इसके बाद भगवान शिव अपने निवास पर वापस चले गए और भगवान विष्णु के वादे के अनुसार सब कुछ वापस जीत लिया। इससे देवी पार्वती को संदेह हो गया बाद में उन्हें पता चला कि भगवान विष्णु ने भगवान शिव की मदद की थी और पासा उनकी इच्छा के अनुसार चला गया था। माता पार्वती सिर्फ इस भ्रम में थी कि वे पासे का खेल शिवजी के साथ खेल रही हैं।
तब देवी पार्वती को भगवान शिव ने बताया था कि भोजन सहित जीवन भी एक भ्रम है। इससे देवी पार्वती क्रोधित हो गईं और कहा कि भोजन को माया कहना मुझे माया कहने के बराबर है। वह चाहती थी कि दुनिया उसके महत्व को जाने और इसलिए वह गायब हो गईं।
इससे भूमि बंजर हो गई। मौसम में कोई बदलाव नहीं हुआ, जिससे सारी भूमि बंजर ही बनी रही। इससे हर जगह सूखा पड़ गया। और लोग भुखमरी का सामना करने लगे। तब धरती पर अन्न और जल की भारी कमी होने लगी। इस कारण चारों ओर हाहाकार मच गया। ऐसे में मनुष्यों ने मिलकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात भगवान शिव की आराधना की। भक्तों की प्रार्थना सुनकर विष्णु जी ने महादेव जी को उनकी योग निद्रा से जगाया और सारी व्यथा कह सुनाई। तब भगवान शिव ने भिक्षु और माता पार्वती ने मां अन्नपूर्णा का रूप धारण किया।
चूंकि, देवी पार्वती लोगों को भूखा नहीं देख सकती थीं इसलिए वह सभी को भोजन करवाने के लिए काशी शहर में उतरीं। जब भगवान शिव को पता चला कि देवी वापस आ गई हैं तो वे भी भिक्षु के रूप में हाथ में कटोरा लेकर उनसे भिक्षा मांगने गए। इसके बाद उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने कहा कि आत्मा शरीर में रहती है और भूखे पेट किसी को मोक्ष नहीं मिल सकता। तभी से देवी पार्वती को अन्नपूर्णा के रूप में पूजा जाता है।
मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती का विशेष संबंध सनातन धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है। मोक्षदा एकादशी, मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को मनाई जाती है।
हिन्दू धर्म में एकादशी और प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। ये व्रत धार्मिक श्रद्धा, मानसिक शांति और आध्यात्मिक लाभ के लिए किए जाते हैं।
सनातन धर्म में प्रदोष व्रत को अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। यह व्रत हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। भगवान शिव की साधना करने वाले साधक को पृथ्वी लोक के सभी सुख प्राप्त होते हैं और मृत्यु उपरांत उच्च लोक में स्थान मिलता है।
हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के लिए समर्पित है। 13 दिसंबर 2024 को मार्गशीर्ष मास का अंतिम प्रदोष व्रत रखा जाएगा।