उपनयन संस्कार, जिसे जनेऊ संस्कार भी कहा जाता है, हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में से एक अत्यंत पवित्र और आवश्यक संस्कार है। यह संस्कार बालक के जीवन में धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान की शुरुआत का प्रतीक होता है। उपनयन का शाब्दिक अर्थ है – "निकट लाना" यानी बालक को गुरु और वेदों के ज्ञान के समीप लाना।
इस अवसर पर बालक को जनेऊ (यज्ञोपवीत) धारण कराया जाता है – एक पवित्र धागा जिसमें तीन सूत होते हैं। ये तीन सूत ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक माने जाते हैं, साथ ही देव ऋण, पितृ ऋण और ऋषि ऋण का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। जनेऊ पुरुष के बाएं कंधे के ऊपर से दाहिनी भुजा के नीचे तक पहनाया जाता है, और इसके नियमों का पालन करना आवश्यक होता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, जून 2025 में जनेऊ संस्कार के लिए निम्नलिखित शुभ तिथियां और मुहूर्त उपलब्ध हैं:
5 जून 2025, गुरुवार
मुहूर्त: सुबह 08:51 से दोपहर 03:45 बजे तक
6 जून 2025, शुक्रवार
मुहूर्त: सुबह 08:47 से दोपहर 03:41 बजे तक
7 जून 2025, शनिवार
मुहूर्त: सुबह 06:28 से 08:43 बजे तक
मुहूर्त: सुबह 11:03 से शाम 05:56 बजे तक
8 जून 2025, रविवार
मुहूर्त: सुबह 06:24 से 08:39 बजे तक
12 जून 2025, गुरुवार
मुहूर्त: सुबह 06:09 से दोपहर 01:01 बजे तक
मुहूर्त: दोपहर 03:17 से रात 07:55 बजे तक
15 जून 2025, रविवार
मुहूर्त: सुबह 07:31 से दोपहर 02:23 बजे तक
30 जून 2025, सोमवार
मुहूर्त: सुबह 06:45 से 10:57 बजे तक
मुहूर्त: दोपहर 01:43 से शाम 05:33 बजे तक
जनेऊ में तीन सूत्र होते हैं जो त्रिगुण – सत्व, रज और तम का प्रतीक हैं। इसमें पांच गांठें होती हैं, जो पंच महापुरुषार्थ – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष और ब्रह्म की ओर संकेत करती हैं। इसकी लंबाई 96 अंगुल मानी जाती है, जो मानव जीवन के 96 संस्कारों और गुणों को दर्शाती है। जनेऊ को धारण करने के बाद व्यक्ति को गायत्री मंत्र का नियमित जप करना चाहिए और संध्या वंदन की परंपरा अपनानी चाहिए।
सनातन धर्म में हरिहर में हरि से आश्य है भगवान विष्णु और हर यानी कि भगवान शिव। दोनों एक दूसरे के आराध्य हैं। इनकी पूजा करने से व्यक्ति का भाग्योदय होता है और जातकों को उत्तम परिणाम मिलते हैं।
वैकुंठ एकादशी को सनातन धर्म में बेहद शुभ माना गया है। इसे मुक्कोटी एकादशी, पुत्रदा एकादशी और स्वर्ग वथिल एकादशी भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह एकादशी व्रत करने से वैकुंठ के द्वार खुलते हैं।
भगवान चक्रधर 12वीं शताब्दी के एक महान तत्त्वज्ञ, समाज सुधारक और महानुभाव पंथ के संस्थापक थे। महानुभाव धर्मानुयायी उन्हें ईश्वर का अवतार मानते हैं। उनका जन्म बारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में, गुजरात के भड़ोच में हुआ था। उनका जन्म नाम हरीपालदेव था।
मां भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक, ज्वालामुखी मंदिर, अपनी अनूठी विशेषता के लिए प्रसिद्ध है। इसे 'जोता वाली मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता सती के शरीर के टुकड़े जहां-जहां गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए।