Logo

शिव पूजा में क्यों नही बजाते शंख

शिव पूजा में क्यों नही बजाते शंख

भगवान शिव की पूजा करते समय क्यों नही बजाया जाता, सुख-समृद्धि दायक शंख 


शंख सनातन धर्म में सभी धार्मिक और वैदिक कार्यों की पूजन सामग्री का अभिन्न हिस्सा। हमारे पूजा पाठ में शंख का विशेष स्थान है। मान्यता है कि शंख सुख-समृद्धि और सौभाग्यदायी हैं इसलिए भारतीय संस्कृति में मांगलिक चिह्न के रूप में सर्वमान्य भी है।


हमारे देवी देवताओं के मुख्य आयुध में भी शंख शामिल हैं। अपनी ध्वनि से आध्यात्मिक शक्ति उत्पन्न करने का सामर्थ्य रखने वाला शंख भगवान विष्णु अपने हाथों में रखते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं शिव आराधना या शिव पूजा के समय शंख बजाना मना है।


शास्त्रों के अनुसार शंख को परम पवित्र और मंगलकारी माना गया है। लेकिन जहां एक ओर भगवान विष्णु को शंख बहुत ही प्रिय है और शंख से जल अर्पित करने पर भगवान विष्णु अति प्रसन्न हो जाते हैं, वहीं भगवान शिव की पूजा में शंख नहीं बजाने का नियम है। महादेव को ना तो शंख से जल अर्पण किया जाता है और न ही शिव पूजा में शंख बजाया जाता है। तो आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कथा।


शिवपुराण के अनुसार 


दैत्यराज दंभ ने संतान प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की। उसकी कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने जब उसे वर मांगने को कहा तो दंभ ने एक परम बलशाली, महापराक्रमी पुत्र का वर मांगा। विष्णु जी ने उसे तथास्तु कहा। भगवान के वरदान से दंभ के यहां पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम शंखचूड़ रखा गया।



ब्रह्माजी ने दिया वरदान और श्रीकृष्ण कवच


विष्णु जी के वरदान से जन्मा यह बालक युवावस्था से ही पराक्रमी था। शक्ति बढ़ाने के लिए शंखचूड़ ने पुष्कर में ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्मदेव उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और शंखचूड ने वर मांगने को कहा। उसने स्वयं के देवताओं के लिए अजेय हो जाने का वर मांगा। ब्रह्माजी ने उसे यह वरदान दे दिया। साथ ही उसे अजेय श्रीकृष्ण कवच भी दे दिया। इसके बाद ब्रह्माजी की आज्ञा से शंखचूड ने धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह कर लिया।



शिवजी भी नहीं जीत पाए 


अधिकांश दैत्यों की तरह ब्रह्माजी से वरदान मिलने के बाद शंखचूड में भी अहंकार और घमंड आ गया और वह तीनों लोकों में अपना स्वामित्व स्थापित करने के लिए अत्याचार करने लगा। शंखचूड़ से त्रस्त होकर देवताओं ने विष्णुजी से गुहार लगाई लेकिन भगवान विष्णु ने खुद दंभ को पुत्र का वरदान दिया था, ऐसे में विष्णुजी ने शंकर जी की आराधना की और उन्हें देवताओं की रक्षा करने को मना लिया। लेकिन बह्मदेव के वरदान, श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकें। 



हड्डियों से शंख का जन्म हुआ


जब शंखचूड़ का अत्याचार तीनों लोकों में बढ़ने लगा और वो बेकाबू होकर लोगों का संहार करने लगा तब विष्णु जी ने ब्राह्मण का रूप धारण कर दैत्यराज से श्रीकृष्णकवच दान में मांगा और शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के सतीत्व को भंग कर दिया । इसके बाद शक्तिहीन हो चुके शंखचूड़ का भगवान शिव ने अपने विजय नामक त्रिशूल से वध कर दिया। कहा जाता है कि शंखचूड़ की हड्डियों से शंख की उत्पत्ति हुई। इसी कारण शंखनाद और शंख जल का उपयोग शंकर जी के अतिरिक्त समस्त देवताओं की पूजा में किया जाता है।


........................................................................................................
श्रावण मास की कामिका एकादशी (Shraavan Maas Kee Kaamika Ekaadashee)

युधिष्ठिर ने कहा-हे भगवन्! श्रावण मास के कृष्णपक्ष की एकदशी का क्या नाम और क्या माहात्म्य है सो मुझसे कहने की कृपा करें।

श्रावण शुक्ल की पुत्रदा एकादशी (Shraavan Shukl Kee Putrada Ekaadashee)

युधिष्ठिर ने कहा-हे केशव ! श्रावण मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का क्या नाम और क्या माहात्म्य है कृपया आर कहिये श्री कृष्णचन्द्र जी ने कहा-हे राजन् ! ध्यान पूर्वक इसकी भी कथा सुनो।

भाद्रपद कृष्ण की अजा एकादशी (Bhaadrapad Krishn Ki Aja Ekaadashi)

युधिष्ठिर ने कहा-हे जनार्दन ! आगे अब आप मुझसे भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम और माहात्म्य का वर्णन करिये।

भाद्रपद शुक्ल की वामन एकादशी (Bhadrapad Shukal Ke Vaman Ekadashi )

इतनी कथा सुनकर पाण्डुनन्दन ने कहा- भगवन्! अब आप कृपा कर मुझे भाद्र शुक्ल एकादशी के माहात्म्य की कथा सुनाइये और यह भी बतलाइये कि इस एकादशी का देवता कौन है और इसकी पूजा की क्या विधि है?

यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang