हमारे देश में एक पुरानी कहावत है, "झूठे मुंह मंदिर नहीं जाना चाहिए।" इसका मतलब है कि झूठन मूंह वाले को भगवान के मंदिर में नहीं जाना चाहिए। ये बात हमारी धर्म और संस्कृति से जुड़ी हुई है। जब हम मंदिर जाते हैं तो भगवान से मिलने जाते हैं। भगवान आस्था को बहुत पसंद करते हैं। इसलिए, जब हम झूठे मूंह से मंदिर जाते हैं तो एक तरह से भगवान के अनादर करने के समान है। आइए इस भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
"झूठे मुंह मंदिर नहीं जाना चाहिए" सत्य, शुद्धता और आंतरिक संतुलन को दर्शाता है। मंदिर में जाने से पहले, व्यक्ति को अपने मन और हृदय को शुद्ध करना चाहिए, ताकि वह भगवान के साथ वास्तविक बात कर सके और उसकी पूजा में पूर्णता आ सके। वहीं सत्य बोलना न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि मानसिक और भावनात्मक दृष्टिकोण से भी आवश्यक है, क्योंकि यह व्यक्ति के जीवन में शांति और संतुलन लाता है। झूठ बोलने से मानसिक अशांति उत्पन्न होती है, जो पूजा और भक्ति के वास्तविक उद्देश्य को विघटित करती है। इसलिए "झूठे मुंह मंदिर नहीं जाना चाहिए" जीवन में सत्यता और ईमानदारी की महत्व को समझाने के लिए है, ताकि व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक यात्रा में सफलता प्राप्त कर सके।
मंदिर, धर्म और आस्था का केंद्र होते हैं। इनमें ईश्वर के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। मंदिर में दर्शन करने से भक्त ईश्वर के अधिक निकट महसूस करते हैं। यह एक ऐसा अनुभव है जो मन को शांत करता है और आत्मा को ऊर्जा प्रदान करता है। भक्तों का मानना है कि ईश्वर की कृपा से उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
मंदिर में प्रवेश करने के दौरान आप अपने आराध्य के मंत्रों का जाप विशेष रूप से करें। इससे भक्तों पर ईश्वर की कृपा बनी रहती है और सौभाग्य की भी प्राप्ति होती है।
2025 में, मकर संक्रांति 14 जनवरी को है। इस त्योहार को देश के सभी लोग अलग-अलग तरीके से मनाते हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं।
मकर संक्रांति, हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। इस दिन भगवान सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। यह दिन भगवान सूर्य को समर्पित होता है।
मकर संक्रांति का त्योहार आगामी 14 जनवरी को है। देश के कई हिस्सों में इसे खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। खिचड़ी के चावल से चंद्रमा और शुक्र की शांति संबंधित है।
हिंदू धर्म में मकर संक्रांति को सूर्यदेव की उपासना और शनिदोष से मुक्ति के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनिदेव के घर आते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, साल में 12 संक्रांतियां होती हैं।