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त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, नासिक (Trimbakeshwar Jyotirlinga, Nashik)

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, नासिक (Trimbakeshwar Jyotirlinga, Nashik)

महाराष्ट्र में अलग-अलग स्थानों पर तीन पवित्र ज्योतिर्लिंग स्थित है। इनमें से एक ज्योतिर्लिंग नासिक से लगभग 28 किमी की दूरी पर है। इस ज्योतिर्लिंग में तीन देवताओं का स्वरूप विराजमान है जिन्हें त्रिदेव कहा जाता है। त्रिदेव से हमारा तात्पर्य  ब्रह्मा, विष्णु और शिव है। दरअसल इस मंदिर के अंदर एक छोटे से गढ्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग  हैं इन्हें तीनों देवों का प्रतीक माना जाते हैं। हम बात कर रहे हैं द्वादश ज्योतिर्लिंगों में आठवें स्थान पर आने वाले त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की। ये ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के उद्गम स्थल के समीप है। इस ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति के पीछे गोदावरी और गौतम ऋषि से जुड़ी एक कथा मिलती है, जिसका वर्णन शिव पुराण में भी मिलता है। जिसके बारे में हम पौराणिक कथा में विस्तार जानेंगे। इस ज्योतिर्लिंग की खास बात यह भी है कि यहां हर 12 साल में कुंभ का मेला लगता है। बता दें कि कुंभ का मेला पृथ्वी पर सिर्फ उन चार जगहों पर लगता है जहां समुद्र मंथन के दौरान अमृत की बूंदे गिरी थी। वे चार जगह हैं प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। धार्मिक मान्यता के अनुसार त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से सभी मनोकामना पूरी होती है और पूर्व जन्म व इस जन्म में किए गए पापों से मुक्ति मिल जाती है। तो आईये जानते त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा और मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें..


त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक कथा 


त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति से जुड़ी कई किवंदतिया प्रचलित है। इन्ही में से एक प्रचलित कथा के अनुसार महर्षि गौतम और उनकी पत्नी देवी अहिल्या ब्रह्मगिरी पर्वत पर एक आश्रम में रहते थे और भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। आश्रम के कई ऋषि-मुनि महर्षि गौतम से ईर्ष्या का भाव रखते थे और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते रहते थे। ईर्ष्या के चलते ऋषियों ने महर्षि गौतम को आश्रम से बाहर निकालने की योजना बनाई और उन पर गौहत्या का आरोप लगा दिया। सभी ने कहा कि इस हत्या के पाप के प्रायश्चित के लिए देवी गंगा को यहां लेकर आना होगा। तभी महर्षि गौतम ने ये ठान लिया कि वे मां गंगा को धरती पर लेकर आएंगे। महर्षि ने वहीं एक शिवलिंग की स्थापना की और तपस्या में लीन हो गए। ऋषि की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी और माता पार्वती वहां प्रकट हुए। भगवान भोलेनाथ ने गौतम ऋषि से वरदान मांगने को कहा तब ऋषि गौतम ने शिवजी से देवी गंगा को उस स्थान पर भेजने का वरदान मांगा। लेकिन इस पर मां गंगा ने शर्त रखी की यदि भगवान शिव इस स्थान पर रहेंगे, तभी वह यहां रहेंगी। गंगा के ऐसा कहने पर शिवजी वहां त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए। और तभी से मां गंगा गौतमी नदी के रूप में वहां बहने लगी। गौतमी नदी का ही एक नाम गोदवरी भी है।


त्र्यंबकेश्वर मंदिर के बारे में कुछ खास बातें 


काले पत्थरों पर नक्काशी और अपनी भव्यता के लिए त्र्यंबकेश्वर मंदिर दुनिया भर में प्रसिद्ध है। पूरा मंदिर काले पत्थरों से बना हुआ है। चौकोर मंडप और बड़े दरवाजे मंदिर की शान है। मंदिर के अंदर स्वर्ण कलश है और शिवलिंग के पास हीरों और अन्य कीमती रत्नों से जड़े मुकुट रखे हैं। इस भव्य मंदिर के निर्माण को लेकर कहा जाता है कि इसका निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी बाजीराव ने लगभग (1740-1760) के आसपास एक पुराने मंदिर के स्थान पर कराया था। साथ ही कहा जाता है कि इस मंदिर को बनाने में कई साल लग गए थे। कई लोगों का यह मानना है कि मंदिर के निर्माण में बड़ी रकम लगी थी। त्र्यबंकेश्वर मंदिर के पास तीन पर्वत स्थित हैं, जिन्हें ब्रह्मगिरी, नीलगिरी और गंगा द्वार के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मगिरी को शिव स्वरूप माना जाता है। नीलगिरी पर्वत पर नीलाम्बिका देवी और दत्तात्रेय गुरु का मंदिर है। गंगा द्वार पर्वत पर देवी गोदावरी यां गंगा का मंदिर है। मूर्ति के चरणों से बूंद-बूंद करके जल टपकता रहता है, जो कि पास के एक कुंड में जमा होता है।


त्र्यंबकेश्वर मंदिर के आसपास दर्शनीय और घूमने योग्य स्थल 


केदारेश्वर मंदिर

निवृत्तनाथ मंदिर

कुशावर्त

श्री नीलाम्बिका मंदिर/दत्तात्रेय मंदिर

अंजनेरी मंदिर

ब्रह्मगिरी पहाड़ी

अहिल्या संगम तीर्थ

पांडव लेनी गुफाएं

मुक्तिधाम मंदिर

पंचवटी


त्र्यंबकेश्वर मंदिर घूमने और दर्शन करने का अच्छा मौसम

 

वैसे तो आप 12 माह में कभी भी त्र्यंबकेश्वर मंदिर में दर्शन कर सकते हैं। लेकिन यहां घूमने और दर्शन के साथ और भी जगह एक्सप्लोर करने के लिए जून से अगस्त के बीच का समय अनुकुल है। 


त्र्यंबकेश्वर मंदिर में दर्शन और आरती का समय 


त्र्यंबकेश्वर मंदिर सुबह 5 बजे खुलता है और रात 9:00 बजे बंद हो जाता है। मंदिर में मंगला आरती सुबह 5:30 बजे से शुरू होती है और 6 बजे तक चलती है। इसके बाद 6 से 7 बजे तक अंतरालय अभिषेक होता है।  मध्यान्ह पूजा 1: 00 बजे दोपहर से 1: 30 बजे दोपहर तक होती है। भगवान शिव के स्वर्ण मुकुट के दर्शन 4: 30 बजे से 5: 00 बजे तक होते हैं। इसके बाद संध्या पूजा 7: 00 बजे से रात्रि 9: 00 बजे तक होती है।


त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे?


राजधानी दिल्ली से त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी लगभग 1,294.4 किलोमीटर है।


हवाई मार्ग से- 


त्र्यंबकेश्वर मंदिर के सबसे पास का एयरपोर्ट नासिक है, जो त्र्यंबकेश्वर मंदिर से 54 किलोमीटर दूर है। नासिक एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद आप आसानी से टैक्सी या बस लेकर त्र्यंबकेश्वर मंदिर पहुंच सकते हैं।


रेल मार्ग से- 


ट्रेन से भी आप त्र्यंबकेश्वर मंदिर पहुंच सकते हैं। त्र्यंबकेश्वर मंदिर के सबसे पास का रेलवे स्टेशन नासिक है, जो मंदिर से 30 किलोमीटर दूर है। नासिक रेलवे स्टेशन देश के कई शहरों से जुड़ा हुआ है और रोज यहां कई ट्रेनें आती और जाती हैं। नासिक रेलवे स्टेशन से आप ऑटो, टैक्सी या बस से मंदिर पहुंच सकते हैं। 


सड़क मार्ग से- 


अगर आप सड़क के रास्ते त्र्यंबकेश्वर मंदिर आने की सोच रहे हैं तो आप आसानी से आ सकते हैं। आप अपनी कार को खुद चलाकर यहां आ सकते हैं। इसके अलावा आप प्राइवेट टैक्सी या प्राइवेट या सरकारी बस से भी यहां पहुंच सकते हैं। औरंगाबाद, मुंबई, पुणे, नागपुर समेत कई शहरों से यहां के लिए डायरेक्ट बसें हैं।


त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के आस-पास इन Hotels में कर सकते हैं स्टे


Hotel Sant Niwas 

Hotel Shivanand 

Tulsi inn 

Hotel Yellow CourtYard 

FabHotel Silver inn

Hotel Om Gulmohar 

Hotel AmulyShree


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ऐसी लागी लगन, मीरा हो गयी मगन (Aisi Lagi Lagan, Meera Ho Gai Magan)

ऐसी लागी लगन,
मीरा हो गयी मगन,

ऐसी सुबह ना आए, आए ना ऐसी शाम (Aisi Suwah Na Aye, Aye Na Aisi Sham)

शिव है शक्ति, शिव है भक्ति, शिव है मुक्ति धाम।
शिव है ब्रह्मा, शिव है विष्णु, शिव है मेरा राम॥

ऐसो चटक मटक सो ठाकुर (Aiso Chatak Matak So Thakur)

ऐसो चटक मटक सो ठाकुर
तीनों लोकन हूँ में नाय

ऐसो रास रच्यो वृन्दावन (Aiso Ras Racho Vrindavan)

ऐसो रास रच्यो वृन्दावन,
है रही पायल की झंकार ॥

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