बैजू मंदिर, झारखंड राज्य के देवघर में स्थित है, एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और यहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है कि बैजू नामक एक चरवाहे ने इस ज्योतिर्लिंग की खोज की थी और उसी के नाम पर इस जगह का नाम बैद्यनाथ धाम पड़ा। बैजू मंदिर देवघर के प्रसिद्ध शीतला माता मंदिर के सामने ही है। बैजू मंदिर ज्योतिर्लिंग मंदिर से 700 मीटर दूरी पर ही स्थापित है। देवघर का प्रसिद्ध और व्यस्त घंटाघर, मंदिर से लगभग 300-400 मीटर ही दूर स्थित है।
बाबा बैद्यनाथ मंदिर के पश्चिम में मुख्य बाजार में तीन और मंदिर भी हैं। इन्हें बैजू मंदिर के नाम से जाना जाता है। इन मंदिरों का निर्माण बाबा बैद्यनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी के वंशजों ने किसी जमाने में करवाया था। हर मंदिर में भगवान शिव लिंग के स्वरूप में स्थापित है।
भगवान शिव के भक्त रावण और बैजू अहीर की कहानी बड़ी निराली है, पौराणिक कथा के अनुसार रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तप कर रहा था, वह एक-एक करके अपने सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा रहा था। नौ सिर कटने के बाद जब रावण 10वां सिर काटने वाला था तो भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और उससे वर मांगने को कहा, तब रावण ने कामना लिंग को ही लंका ले जाने का वर मांग लिया। रावण के पास सोने की लंका के अलावा तीनों लोकों में शासन करने की शक्ति तो थी ही साथ ही उसने कई देवता, यक्ष और गंधर्वो को कैद कर के लंका में रखा हुआ थी।
इस वजह से रावण ने ये इच्छा जताई कि भगवान शिव कैलाश को छोड़ लंका में रहे। वहीं महादेव ने उसकी इस इच्छा को पूरा तो किया लेकिन साथ ही एक शर्त भी रखी। उन्होंने कहा कि अगर तुमने शिवलिंग को रास्ते में कही भी रखा तो मैं फिर वहीं रह जाऊंगा और नहीं उठूंगा। रावण ने शर्त मान ली, इधर सभी देवता चिंतित हो गए, इस समस्या के समाधान के लिए सभी भगवान विष्णु के पास गए। तभी श्री हरि ने एक लीला रची। भगवान विष्णु ने वरुण देव को आचमन के द्वारा रावण के पेट में घुसने को कहा। इसलिए जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लेकर लंका की ओर चला तो देवघर के पास उसे लघुशंका आ गई। ऐसे में रावण एक बैजू नाम के अहीर को शिवलिंग देकर चला गया। कहते हैं कि बैजू अहीर के रूप में भगवान विष्णु थे। इस वजह से यह तीर्थ स्थान बैजनाथ धाम से विख्यात है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, रावण कई घंटो तक लघुशंका करता रहा जो आज भी एक तालाब के रूप में देवघर में हैं। जैसे-जैसे रावण देरी कर रहा था वैसे-वैसे शिवलिंग का भार बढ़ता जा रहा था।
शिवलिंग के भार से तंग आकर बैजू अहीर ने शिवलिंग को धरती पर स्थापित कर दिया। जब रावण लौट कर आया को लाख कोशिश के बाद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया। तब उसे भगवान की यह लीला समझ में आ गई और वह क्रोधित होकर शिवलिंग पर चार लाठी मारकर फिर अपना अंगूठा गड़ाकर चला गया। वहां छुपा बैजू अहीर ये सब देख रहा था, उसे लगा बाबा जी की भक्ति करने का यही तरीका है। तब से बैजू की यह दिनचर्या बन गया वह रोज शिवलिंग पर चार लाठी मारता फिर अंगूठे से शिवलिंग को दबा कर महादेव की भक्ति में लीन हो जाता था।
एक दिन बैजू को बहुत जोर से भूख लगी, जब वह घर जा कर जैसे ही अन्न मुंह में डाला तो बैजू को याद आया कि आज तो भोले बाबा की भक्ति नहीं की, तभी बैजू अपना भोजन छोड़कर लाठी ले कर चल दिया। जैसे ही शिवलिंग पर प्रहार कर रहा होता तो साक्षात महादेव प्रकट हो गए, महादेव ने कहा, बैजू मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हुआ हूं। बैजू महादेव को देखकर उनके चरणों में गिर जाता और कहता है कि महादेव मैंने रावण को देखा था ऐसा करते तो मुझे लगा कि ऐसी ही आपकी भक्ति की जाती है। महादेव ने बैजू को गले लगाया और कहा कि, बैजू तुमने दिल से मेरी भक्ति की है आज से दुनिया तुम्हें मेरा बड़ा भक्त कहेगी। मेरे नाम से पहले तुम्हारा नाम लिया जाएगा और यह स्थान बाबा बैजनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध होगा। जो भी भक्त सच्चे दिल से यहां आकर पूजा करेगा उसकी हर मनोकामना पूरी होगी। उसके बाद ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की। शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की उसी स्थान पर स्थापना कर दी।
हवाई मार्ग - यहां का निकटतम हवाई अड्डा देवघर हवाई अड्डा है। झारखंड राज्य में देवघर की सेवा करने वाला एक घरेलू हवाई अड्डा है। ये मुख्य शहर से 12 किमी की दूरी पर स्थित है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग - यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन जसीडीह जंक्शन और देवघर रेलवे स्टेशन है। यहां से आप मंदिर के लिए टैक्सी सुविधा ले सकता है।
सड़क मार्ग - झारखंड राज्य सड़क परिवहन नगर लिमिटेड, पश्चिम बंगाल राज्य सड़क परिवहन निगम लिमिटेड और कुछ निजी यात्रा सेवाओं के माध्यम से जुड़ा हुआ है। देवघर सारवा से 16 किमी, सारठ से 36 किमी, जरमुंडी से 41 किमी, चांदमारी से 52 किमी दूर है। आप किसी भी रास्ते से आ सकते हैं।
हिंदू धर्म और सनातन परंपरा में मंत्रों का विशेष महत्व है। इनके उच्चारण से ना सिर्फ आध्यात्मिक उन्नति होती है। बल्कि, यह मानसिक और शारीरिक शांति भी प्रदान करता है।
दिक मंत्र सदियों से सनातन संस्कृति और हिंदू धर्म का अभिन्न हिस्सा रहा हैं। ये मंत्र प्राचीन वैदिक साहित्य से उत्पन्न हुए हैं और इनका उल्लेख वेदों, उपनिषदों और अन्य धर्मग्रंथों में भी मिलता है।
देव है ये भोले भक्तो का,
खुद भी भोला भाला,
गणपति बाप्पा मोरया
मंगल मूर्ति मोरया