हर बारह वर्षों में आयोजित होने वाला नासिक कुंभ मेला इस मंदिर को विशेष दर्जा प्रदान करता है। प्रशासन द्वारा संतों, महंतों और महामंडलेश्वरों की ठहरने की प्राथमिक व्यवस्था यहीं की जाती है। यही नहीं, दो महीनों तक चलने वाले कुंभ के दौरान हजारों श्रद्धालुओं को यहां निःशुल्क भोजन भी उपलब्ध कराया जाता है। यह सेवा मंदिर द्वारा वर्षों से बिना किसी भेदभाव के की जा रही है।
इस मंदिर की स्थापना लगभग सन् 1700 के आसपास मानी जाती है। मंदिर के मूल में विराजमान भगवान लक्ष्मीनारायण की मूर्ति पूर्व महंत श्री राम रतन दासजी महाराज द्वारा स्थापित की गई थी। मंदिर परिसर में धार्मिक संतुलन और आध्यात्मिक विविधता का सुंदर समावेश देखने को मिलता है। दाहिनी ओर श्रीराम, लक्ष्मण और सीता जी, तो बाईं ओर श्री द्वारकाधीश की मूर्तियाँ हैं। इनके सामने क्रमशः हनुमान जी और गरुड़ जी की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं।
मंदिर में 11 जुलाई 2015 को भगवान शिव सह-परिवार की स्थापना की गई थी, जो इसे और भी विशेष बनाती है। इसके अतिरिक्त, परिसर के समीप पूर्व महंत जनों की चरण पादुकाएं भी स्थापित हैं, जो परंपरा और श्रद्धा का प्रतीक हैं।
मंदिर को संचालित करने वाला ट्रस्ट 9 फरवरी 1955 को पंजीकृत हुआ था। मंदिर के पूर्व और दक्षिणी भाग में लगभग 1.5 एकड़ में फैली गौशाला है, जिसमें 80 से 90 गाएं हैं। इसके साथ-साथ मंदिर परिसर में संत निवास, औषधालय और एक विद्यालय भी संचालित होते हैं, जो समाजसेवा के प्रति मंदिर की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर, नासिक के पंचवटी क्षेत्र में स्थित तपोवन में है, जो शहर का एक प्रमुख धार्मिक और ऐतिहासिक इलाका है।
श्री तुलसी महारानी, करूं विनय सिरनाय ।
जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय ।।
जयति जयति जय ललिते माता! तव गुण महिमा है विख्याता ।
तू सुन्दरी, त्रिपुरेश्वरी देवी! सुर नर मुनि तेरे पद सेवी।
जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग ।
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग ॥
जय जय श्री महालक्ष्मी करूं माता तव ध्यान।
सिद्ध काज मम किजिए निज शिशु सेवक जान।।