पौराणिक कथा के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर व्रत और उपवास रखना बहुत शुभ और फलदायी माना गया है। जो लोग व्रत रखते हैं, उन्हें इस दिन कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए।
एक बार महर्षि वेदव्यास ने अपने बचपन में माता-पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की, लेकिन माता सत्यवती ने उनकी इस इच्छा को नकार दिया। तब वेदव्यास जी हठ करने लगे, और उनके हठ पर माता ने उन्हें वन जाने की आज्ञा दे दी। माता ने उनसे यह भी कहा कि जब घर का स्मरण आए, तो लौट आना।
इसके बाद वेदव्यास तपस्या के लिए वन चले गए, और वहाँ जाकर उन्होंने कठोर तपस्या की। इस तपस्या के फलस्वरूप वेदव्यास को संस्कृत भाषा में प्रवीणता प्राप्त हुई। तत्पश्चात, उन्होंने चारों वेदों का विस्तार किया और महाभारत, अठारह महापुराणों सहित ब्रह्मसूत्र की रचना की।
महर्षि वेदव्यास को चारों वेदों का ज्ञान था, और यही कारण है कि इस दिन से गुरु पूजने की परंपरा चली आ रही है।
बगलामुखी जयंती वैशाख शुक्ल अष्टमी को मनाई जाती है, जो देवी बगलामुखी को समर्पित है। वह दस महाविद्याओं में से आठवीं देवी हैं और श्री कुल से संबंधित हैं। देवी बगलामुखी को पीताम्बरा और ब्रह्मास्त्र भी कहा जाता है। उनकी साधना से स्तंभन की सिद्धि प्राप्त होती है और शत्रुओं को नियंत्रित किया जा सकता है।
देवी बगलामुखी 10 महाविद्याओं में से एक आठवीं महाविद्या हैं, जो पूर्ण जगत की निर्माता, नियंत्रक और संहारकर्ता हैं। उनकी पूजा करने से भक्तों को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन की अनेकों बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, परशुराम द्वादशी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार, भगवान परशुराम को समर्पित हैI
परशुराम द्वादशी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार, भगवान परशुराम की पूजा को समर्पित है। परशुराम द्वादशी विशेष रूप से संतान प्राप्ति के लिए मनाया जाता है।